Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ.२ ०१ प्रथमसमय कृ. कृतयुग्मै केन्द्रियनि० ५४५ येषां ते प्रथमसमयै केन्द्रियाः त एव कृतयुग्मकृतयुग्मा इति प्रथमसमयकृतयुग्मकृतग्माः तादृशाचे केन्द्रिया इति 'कभी उववज्जंति' कुतः स्थानविशेषादागत्य समुत्पद्यन्ते किं नैरविकेन आगत्य तिर्यग्भ्यो मनुष्येभ्यो वा देवेभ्यो वा आगत्य समुत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । उत्तरमाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'तहेव' तथैव 'तिरूप आगत्य उत्पद्यन्ते मनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते देवेभ्य उत्पद्यन्ते इति भावः । 'एवं जहेब पढमो उसओ' एवं यथैव प्रथमउद्देशकः 'सहेब दूसरे उद्देशे का प्रारंभ
कृतयुग्म
'पढमसमय कडजुम्मकडजुम्म एगिंदियाणं भंते !' इत्यादि टीकार्थ- 'पढमसमय कडजुम्मकडजुम्म एगिंदियाणं भते !' हे भदन्त ! एकेन्द्रिय रूप से उत्पत्ति होने में जिनका प्रथम समय है ऐसे वे कृतयुग्म एकेन्द्रिय जीव प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्भ राशिममित एकेन्द्रिय जीव 'कओ उववज्जंति' किस स्थानविशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यग्योनिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'गोपमा ! तहेव' हे गौतम । ये तिर्यज्योनिकों में से आकरके भी उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में से भी आकरके उत्पन्न होते हैं और देवों में से भी आकरके उत्पन्न होते हैं । 'एवं जहेब पढमो उद्देसओ तहेव सोलसखुत्तो वितिओ विभणियन्बो' નાખીજા ઉદ્દેશાને પ્રારંભ—
'पढमसमय कड़जुम्म कडजुम्मए गिंदियाणं भंते! त्याहि
टीडार्थ - 'पढमसमय कडजुम्म कडजुम्मएगिदियाणं भंते! हे भगवन् એકેન્દ્રિયપણાથી ઉત્પન્ન થવામાં જેએને પ્રથમ સમય છે, એવા તે કૃતયુગ્મ કૃતયુગ્મ એકેન્દ્રિય જીવા અર્થાત્ પ્રથમ સમયમાં ઉત્પન્ન થયેલા મૃતયુગ્મ કૃતયુગ્મ शशिवाजा मेहेन्द्रिय वे 'कओ उववज्जंति' ज्या स्थान विशेषथी भावीने उत्पन्न થાય છે? શું તેઓ નૈયિકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા તિય ચ ચેનિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે. { અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે દેવેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गीतभस्वाभीने हे छे - 'गोयमा ! तद्देत्र' डे गौतम । यथे तिर्यय योनिમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે મનુભ્યેામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય छे. याने देवेामांथा भावीने पशु उत्पन्न थाय छे. 'ए' जहेब पढमो उद्देओ तहेब सोलसखुत्तो बितियो वि भणियव्वो' हे गौतम! या संबंधां
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭