Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ. १०३ नै० आयुष्क कर्मबन्धनिरूपणम्
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अक्रियावादिनः खलु भदन्त ! पृथिवीकायिका जीवाः किं नैरयिकायुष्क' मकुन्ति तिर्यग्योनिका युष्कं प्रकुर्वन्ति मनुष्यायुष्क वा मकुर्वन्ति देवायुष्क वा प्रकुर्वन्तीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ' हे गौतम! 'नो नेरइयाउयं पकरेंति' नो नैरयिका युवक प्रकुर्वन्ति अक्रियावादिनः पृथिवीकायिकाः किन्तु 'तिरिकखजोणियाउयं० मणुस्साउयं पकरें ति' तिर्यग्योनिकायुष्क प्रकुर्वन्ति तथा मनुष्यायुष्कं च प्रकुर्वन्ति 'नो देवाउयं पकरेंति' नो देवायुष्क' प्रकुर्वन्ति, अक्रियावादिनां पृथिवीकायिकजीवानां द्वे एव तिर्यग्मतुव्यायुषी भवतो न तु नारक देवायुष्कौ भवत इति । ' एवं ' अन्नाणियवाई बि' एवमक्रियावादिनः पृथिवीकायिकवदेव अज्ञानिकवादि पृथिवीकायिका अपि नो 'अकिरियाबाई णं भंते! पुढवीकाइया पुच्छा' हे भदन्त ! अक्रियावादी पृथिवीकायिक जीव क्या नैरयिक आयुका बन्ध करते हैं ? या तिर्थगायु का बन्ध करते हैं ? या मनुष्यायुका बन्ध करते हैं ? या देवायुका बन्ध करते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेति' हे गौतम! अक्रियावादी पृथिवीकायिक जीव नैरयिक आयुका बन्ध नहीं करते हैं किन्तु तिर्यगायु का बन्ध करते हैं, मनुष्यायु का बन्ध करते हैं, 'नो देवाउयं पकरेति' पर देवायुका भी वे बन्ध नहीं करते हैं। इस प्रकार अक्रियावादी पृथिषीकायिक जीवों के तिर्यगाय और मनुष्यायु इन दो आयुओं का ही बन्ध होता है नैरयिक और देवायुका बन्ध नहीं होता है । 'एवं अन्नाणियवाई वि' अज्ञानिकवादी पृथिवीकायिक जीव अक्रियावादी पृथिवीकायिक जीव के जैसे हो
'अकिरियावा णं भंते ! पुढवीकाइया पुच्छा' डेभगवन् डिवायावाही પૃથ્વીકાયિક જીવ શુ` નૈરયિક આયુષ્યના બંધ કરે છે? અથવા તિચ આયુના બધ કરે છે ? અથવા મનુષ્ય આયુના બધ કરે છે? અથવા દેવ आयुनो अध ४रे हे ? याप्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे है-'गोयमा ! नो नेरइयाउ पकरेति' डे गौतम ! अडियावाही पृथ्वी आर्थिक व नैरयि न्यायुना બંધ કરતા નથી. પરં'તુ તિયાઁચ આયુષ્યના અંધ કરે છે, અને મનુષ્ય आयुध पुरे छे. 'नो देवाउयं पकरेंति' परंतु ते देव आयुष्यलो प અધ કરતા નથી. આ રીતે અક્રિયાવાદી પૃથ્વીકાયિક જીવાને તિયા આયુ અને મનુષ્ય આયુ આ એ આયુનાજ અધ ડાય છે. તેને नैराश्य भने द्वेव आयुनो मध होतो नथी. 'एव' अन्नाणियवाइ वि' अज्ञान વાદી પૃથ્વીકાયિક જીવ, અક્રિયાવાદી પૃથ્વીકાયિક જીવના કથન પ્રમાણે જ નારક આવ્યુ અને દેવ આયુના બંધ કરતા નથી. પરંતુ તિ ચ આયુ અને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭