Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसो प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता' पश्चविधा:-पश्चपकारकाः पृथिवीकायिकादि वनस्पति कायिकान्ताः कृष्णलेश्या एकेन्द्रियाः प्रज्ञप्ताः कथिताः । 'भेओ चउक्को जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति' भेद ऋतुष्कको यथा कृष्णलेश्यै केन्द्रियशते त्रयस्त्रिंशत्तमे शतके द्वितीये एकेन्द्रियशते यावद् वनस्पतिकायिका इति ! कृष्णलेश्य पृथिवीकायिकादारभ्य कृष्णलेश्य वनस्पतिकायिकानां पञ्चानामपि सूक्ष्म-दादर-पर्याप्ता-ऽपर्याप्तरूपा चत्वारो भेदाः, इति
शतक ३४ में दूसरा एकेन्द्रिय शतक २ 'काविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णता' ३४-११
टीकार्थ--'काविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिदिया पनत्ता' हे भदन्त! 'कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? 'गोयमा !' पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता' हे गौतम ! कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। और ये पृथिवीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक हैं। 'भेमो चउक्कभो जहा काहलेस्स एगिदियसए जाव वणस्सहकाइयत्ति' इन के चार भेद कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रियशतक में कहे अनुसार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये अर्थात् ३३ वें शतक में द्वितीय एकेन्द्रिय शतक में यावत् वनस्पतिकायिक तक पांचों कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रियों के सूक्ष्म चादर पर्याप्त और अपर्याप्त रूप से
म न्द्रिय शत प्रा - 'कइविहा ण भंते ! कण्हलेस्स एगिदिया पण्णत्ता' त्याह
A.- 'काविहा ण भंते ! कण्हलेस्मा एगि दिया पणत्ता' मान् हुवेश्या१1 2न्द्रिय | eam २ मा मावेस छ ? 'गोयमा ! पंचविहा कण्हलेक्स एगिदिया पन्नत्ता' 3 गौतम ! वेश्या सन्द्रिय જી પાંચ પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે. અને તે પૃથ્વીકાયિકથી લઈને વનસ્પતિ अयि सुधीना समावा. 'भेओं चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति' वेश्यावा सन्द्रिय शतमा ४ा प्रमाणे माना ચાર ભેદ યાવત વનસ્પતિકાય સુધી સમજવા. અર્થાત્ ૩૩ તેત્રીશમાં શતકના બીજા એકેન્દ્રિય શતકમાં યાવત્ વનસ્પતિકાય સુધી પાંચે પ્રકારના કૃષ્ણલેશ્યાવાળા એકેન્દ્રિય જીવને સૂક્ષમ, બાદર, પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક રૂપથી ચાર ભેદે જે પ્રમાણે કહ્યા છે, એ જ પ્રમાણે અહિયાં પણ સમજવા.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭