Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे सरीसृपातिसिंहान् विहाय तदितरे एव समुपद्य ते, आस्तत्र ये जी उत्प पन्ते तेषामेवोत्पादः पठनीय इति । 'सेसं तं चेव' शेषम्-उपपातव्यतिरिक्तं सर्वे तदेव औधिकगमवदेवेति भावः । 'धूमप्पमा पुढवी कण्हलेस खुड्डाग कडजुम्म नेरइयाण भंते ! को उज्जति' धूमपमा पृथिवीकृष्णलेश्पक्षुल्लक कृत. युग्मनैरयिकाः खलु भदन्न ! कुतः कस्मात् स्थानविशेषादागत्य समुत्सद्यन्ते ? इति प्रश्नः। उत्तरमाह-'एवं चेत्र' इत्यादि, ‘एवं चेव निरवसे सं' एवमेव-औधिगमबदेव निरवशेष ज्ञातव्यम् इति । 'एवं तमाए वि अहे सत्तमाए वि एवं धूमप्रभा पृथिवी सम्बन्धि कृष्णलेश्य क्षुल्लकनारकविषये यथा कथितं तथैव तमाख्यषष्ठ नारकपृथिवीसम्बन्धि नारकविषयेऽपि, एवं पूर्ववदेव अधः सप्तम्यामिति, धूमप्रभा आदि में होती है, यहां असंज्ञी, सरीसृप, पक्षी एवं सिंह इनका उत्पाद होता नहीं है अतः इन्हें छोड़कर बाकी के जीव यहां उत्पन्न होते हैं । इसलीए जो जीव यहां उत्पन्न होते हैं उनका ही यहाँ उत्पाद कहना चाहिये, 'सेसं तं चेव' इस प्रकार उत्पाद के सिवाय और सब कथन औधिक गम के जैसा ही यहां पर जानना चाहिये, इसीलीए धूमप्पभा पुढवी कण्हलेस्स खुड्डाग कडजुम्म नेरहयाणं भंते! को उववज्जति 'इस प्रश्न का उत्तर प्रभुश्री ने 'एवं चेव निरवसेसं' इस सूत्रपाठ द्वारा दिया है। 'एवं तमाए वि अहे सत्तमाए वि' इसी प्रकार का कथन तमःप्रभा में भी और अधासप्तमी पृथिवी के नारकों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये, परन्तु प्रज्ञापना के ६ठे व्युत्क्रान्ति पद में जैसा यहां नारकों का उत्पाद कहा है वहां वैसा ही છે. આ કૃષ્ણવેશ્યા ધૂમપ્રભામાં હોય છે. અહિયાં અસંસી, સરીસૃપ, (સર્પ) પક્ષી અને સિંહ આટલાને ઉત્પાદ થતો નથી. તેથી આટલાને છોડીને બાકીના અહિયાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી જે જી सहिया ५न्न थ य छे. तमान पाहल मड़ियां 3 नये. 'सेसं त રે’ આ રીતે ઉત્પાદના કથન શિવાય બાકીનું સઘળું કથન ઔધિક ગામના ४यन प्रमाणे मडिया सभा तथी. 'धूमप्पभा पुढवी कण्हलेस खुड्डागकडजुम्मनेरइयाण भते ! कओ उववज्जति' मा प्रभारी प्रश्न रेस छ. मा प्रश्न उत्तरमा ‘एवं चेव निरवसेसं' मा प्रमाणे प्रभुश्री मे ४ छे. 'एवं तमाए वि अहे सत्तमाए वि' मा प्रमाणेनुयन तमामाथी ने मधासप्तमी પૃથ્વી સુધીના નારકેના સંબંધમાં પણ સમજવું. પરંતુ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાં છઠા ચહ્રાંતિ પદમાં જે પ્રમાણે જ્યાં નારકોને ઉત્પાત કહ્યો છે, ત્યાં એજ प्रभागेन। पात वा नये.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭