Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ. २ ०१ अनंत० नै. क्रियावादिकत्वादिकम् १४५ जीवस्य तादृशं तादृशमेव पदजातमन्तर्भाव्य आलापकं विधाय वक्तव्यता मणितव्येति इदमेव वैलक्षण्यं ज्ञातव्यमिति । 'इमं से लक्खणं' इदं तस्य भव्यस्वस्य लक्षणम् 'जे किरियाबाई सुकपक्खिया सम्मामिच्छादिट्ठो य एए सध्वे भवसि - दूधिया ' ये क्रियावादिनः शुक्लपाक्षिकाः सम्यग्मिथ्यादृष्टय एते सर्वेऽपि भवसिदधिकाः 'नो अभवसिद्धिया' नो अमवसिद्धिकाः, 'सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि शेषाः क्रियावादि शुक्लपाक्षिका सम्यग्मिथ्यादृष्टि व्यतिरिक्ताः शेषाः सर्वे कृष्णपाक्षिकादयः मत्रसिद्धिका अपि भवन्ति अभव सिद्धिका अपि भवन्ति । भव्यत्वस्येदं लक्षणम् यत् क्रिपश्वादिनः शुक्लपाक्षिकाः सम्यग्मिथ्यादृष्टयश्च भव्या एव भवन्ति नामव्याः शेषाश्च Hour अभव्या अपि भवन्ति सम्यग्दृष्टि ज्ञान्यवेदका कबायायोगिनां भव्यत्वं जीव के जैसा - २ पद है उस-२ जीव के वैसे -२ ही पद का अन्तर्भाव करके आलापक बनाकर वक्तव्यता कहनी चाहिये यही यहां विशेषता है । 'इमं से लक्खणं' यह उस भव्यत्व का लक्षण है । 'जे किरियावाई सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छादिट्ठी एए सव्वे भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' जो क्रियावादी शुक्लपाक्षिक सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ये सब ही भवसिद्धिक होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । 'सेसा सव्वे भवसि - द्विया वि, अभवसिद्धिया वि' क्रियावादी शुक्लपाक्षिक सम्यग्मिथ्यादृष्टि से भिन्न और जो सब कृष्णपाक्षिक आदि हैं वे भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं। भव्यत्वका यह लक्षण हैं कि क्रियावादी शुक्लपाक्षिक सम्यग्मिथ्यादृष्टि भव्य ही होते हैं अभव्य नहीं । इन से अतिरिक्त और सब जीव भव्य भी होते हैं और अभव्य तस्स भणियव्वं' परंतु भेनेने प्रभा यह उद्या होय ते वने ते ते प्रभाશેના પાના અંતર્ભાવ કરીને આલાપકા બનાવીને કથન કરી લેવું જોઈ એ. मेन मडियां विशेष पशु छे. 'इमं से लक्खणं' या मे भव्यत्वनुं सक्षषु छे. 'जे किरियावाई सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छादिट्ठी' ने डियावाही शुपाक्षिक सभ्यभूमिथ्यादृष्टि छे, मे सघणा अवसिद्धि होय छे 'नो अभवसिद्धिया' अलगसिद्धि होता नथी. 'सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि ક્રિયાવાદી શુકલપાક્ષિક સભ્યમિથ્યાષ્ટિથી જૂદા ખીજા જે કૃષ્ણપાક્ષિક વિગેરે છે, તે ભત્રસિદ્ધિક પણ होय छे, અને અભવસિદ્ધિક પણ હાય છે. ભવ્યત્વનું આ લક્ષણ કહેલ છે, કે—ક્રિયાવાદી શુકલપાક્ષિક સમ્યગ્મિથ્યાર્દષ્ટિ ભવ્ય જ હાય છે, અલભ્ય હાતાં નથી. તેના શિવાય બીજા
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭