Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०३० उ.१ सू०१ जीवानां क्रमवन्धकारणनिरूपणम् ६१ क्रियावादकारणीभूत यथावस्थितद्रव्यपर्यायात्मकार्थपरिच्छेदयुक्तत्वात् । अत्र खल्लु यानि सम्यग्दृष्टियोग्यस्थानानि अलेश्यत्वसम्यग्दर्शनज्ञानिनो असंज्ञोपयुक्तत्वावेदकत्वादीनि तानि सण्यिपि क्रिशवादे एव निक्षिप्यन्ते। यानि खलु मिथ्यादृष्टि स्थानानि मिथ्यात्वज्ञानादीनि तानि शेष समवसरणत्रये निक्षिप्यन्ते 'नो अकिरियावाई' अलेश्या जीवा प्रक्रियावादिनो नो भवन्ति द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु परिच्छेदाक्तत्वादिति । 'नो अन्नाणियबाई'नो न वा अज्ञानिकवादिनः पूर्वो. क्तयुक्तरेव । 'नो वेणइयवाई नो न मा नायिकवादिनो भवन्ति अलेश्या जीवा इति ! 'कण्हपक्खियाणं भंते ! जीवा कि किरियाबाई पुच्छा' कृष्णपाक्षिकाः खलु होते हैं । अयोगी और सिद्ध ये अलेश्य जीव हैं। ये क्रियावादी ही होते हैं। क्यों की इन में क्रियावाद के कारणीभूत यथावस्थित द्रव्य पर्यायात्मक पदार्य के परिच्छेद से युक्तता है। यहां सम्यग्दृष्टि के योग्य अलेश्यत्व, सम्पग्दर्शन, ज्ञानी, नो संज्ञोपयुक्त और अवेदकत्व आदि स्थान हैं-सो इन सबका क्रियावाद में ही समावेश हुआ है तथा जो मिथ्याप्टि के योग्य मिथ्यात्व, अज्ञान आदि स्थान हैं सो इनका शेष समवसरण त्रय में समावेश हुआ है। 'नो अकिरियावाई' अलेश्य जीव अक्रियावादी नहीं होते हैं। क्योंकि ये द्रव्य पर्यायात्मक वस्तु के ज्ञान से युक्त होते हैं । 'णो अन्नाणियवाई' इसी प्रकार वे अज्ञानिक वादी भी नहीं होते हैं। 'जो वेणइयवाई' वैनयिकवादी भी नहीं होते हैं। क्यों की ये द्रव्यपर्याधात्मक वस्तुके ज्ञानवाले होते हैं। 'कण्हपक्खियाणं भंते ! जीवा किरियाबाई पुच्छा' हे भदन्त ! जो कृष्णपाक्षिक વિનાના જ ક્રિયાવાદી હોય છે. અગી અને સિદ્ધ એ અલેશ્ય છવ છે. એ ક્રિયાવાદી જ હોય છે. કેમ કે તેઓ કિયાવાદના કારણભૂત યથા વસ્થિતદ્રવ્ય પર્યાયાર્થિક પદાર્થના પરિચછેદથી યુક્ત હોય છે. અહિયાં સમ્યગુ દ્રષ્ટિને એ અલેશ્યપણામાં, સમ્યક્દર્શનજ્ઞાની નોસંજ્ઞોપયુક્ત અને અવેદ પણ વિગેરે સ્થાને છે તે સઘળાને કિયાવાદમાં જ સમાવેશ થાય છે. તથા જે મિથ્યાષ્ટિને ૫ મિથ્યાત્વ, અજ્ઞાન. વિગેરે સ્થાને છે, તેનો સમાવેશ સમવરણત્રયમાં થયેલ છે.
'नो अकिरियावाई' सेश्याविनानी वो मठियावाही हाता नथी. भतेमाद्र०५ पर्यायात्म १२तुना ज्ञानयी युत डाय छे. 'णों अन्नाणियवाई' से प्रमाणे अज्ञानवाही ५२ हाता नथी. 'णो वेणइयवाइ' वैनयिवाही ५५ से પ્રમાણેના હોતા નથી. કેમ કે તેઓ દ્રવ્ય પર્યાયામક વસ્તુમાં જ્ઞાનવાળા હોય છે.
'काहपक्खिया णे भंते ! जीवा कि किरियावाई पुच्छा लगन् र કૃષ્ણપાક્ષિક જીવે છે, તેઓ શું કિયાવાદી હોય છે? અક્રિયાવાદી હોય છે ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭