Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ.१ सू०१ जीवानां कर्मबन्धकारणनिरूपणम् १५ बादिनो वैनयिकवादिश्च भवन्तीति । 'आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता जहा सलेस्सा' आहारससंबोपयुक्ता यावत्परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता यथा सलेश्या, अत्र यावत्पदेन भयसंज्ञा मैथुनसंज्ञः संग्रहः, तथा चैते सर्वेऽपि क्रियावादिनी. ऽपि भवन्ति अक्रिपादादिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिकवादिनोऽपि वैनयिकवादिनो. ऽपि भवन्ति तथाविधविलक्षण परिणामवत्वादितिभावः। 'नोसन्नोवउत्ता जहा अलेस्सा' को संज्ञोपयुक्ता जीवा अलेश्यजीववदेव केवलं क्रियावादिन एव न तु अक्रियावादिनो न वा अज्ञानिकादिनो न वा वैनयिकवादिनो भवन्तीति। 'सवेद गा जाब नपुंसगवेगा जहा सलेसा' सवेदका जीवा यावत् नपुंसकवेदका यथा प्रकार सलेय जीव क्रियानोदी भी होते हैं, अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और चैनयिकबादी भी होते हैं, उसी प्रकार से आहार संज्ञोपयुक्त जीव थापत् परिग्रह संज्ञोपयुक्त जीव भी चारों प्रकार के समवसरणवाले होते हैं। क्णे कि इनका परिणाम विलक्षण प्रकार का होता है। यहां यावत् शब्द से भयसंज्ञोपयुक्त और मैथुन. संज्ञोपयुक्त इनको ग्रहण हुआ है। तथा च-ये सब क्रियावादी भी होते हैं अक्रियावादिभि होते हैं अज्ञानबादी भी होते है और वैनयिकवादी भी होते हैं। 'नो मण्णोवउत्ता जहा अलेस्ता' नो संज्ञोपयुक्त जीव अले. श्य जीव के जैसे केवल क्रियावादी ही होते हैं। अक्रियावादी अज्ञानवादी और वैनयिकवादी नहीं होते हैं। 'सवेदगा जाव नपुंसगवेदगा जहा सलेस्सा 'सवेदक जीव यावत् नपुंसकवेदक जीव मलेख्य 'सलेस्सा' सबेश्य २ प्रमाणे यापही ५५ डाय छ, मठियापही પણ હોય છે. અજ્ઞાનવાદી પણ હાથ છે. અને વૈયિકવાદી પણ હોય છે. એજ પ્રમાણે આહાર સંજ્ઞોપગવાળા છે પણ યાવત્ પરિગ્રહ સંશોપ યુક્ત જીવ પણ ચારે પ્રકાર ના સમવસરણવાળા હોય છે. કેમ કે તેઓનું પરિણામ વિલક્ષણ પ્રકારનું હોય છે. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી ભયસંપ
ગવાળા અને મૈથુનસંપગવાળા એ બે ગ્રહણ કરાયા છે. તથા આ બધા કિયાવાદી પણ હોય છે. અક્રિયાવાદી પણ હેય છે. અજ્ઞાનવાદી પણ आय. अन वैयिवाही ५५ डाय छे. 'नो सण्णोवउत्ता जहा अलेस्सा है। સંશોપયત જ અલેશ્યાવાળા જીવના કથન પ્રમાણે કેવળ ક્રિયાવાદી જ काय छे. मठियावाही, अशानाही, अने ३नयिही डोसा नथी. 'सवेयगा जाव नपुंसगवेयगा जहा सलेस्सा' सवे६४ ७१ यावत् नपुंसवे ७१
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭