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जैनधर्म पर कतिपय सम्मातयां
जैनधर्म अने संस्कृति गौरव (गुजराती पुस्तक से साभार अनुवादित )
भारत वर्ष में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके अनुयायी साधुओं और आचार्यों में से अनेक जनोंने धर्मोपदेश के साथ ही साथ अपना समस्त जीवन ग्रंथ रचना और ग्रंथसंग्रह में खर्च कर दिया है । बीकानेर, जेसलमेर और पाटण आदि स्थानों में गाड़ियों, हस्त लिखित पुस्तकें अब भी सुरक्षित पायी जाती हैं। यदि जर्मनी, फ्रांस और इंगलैंड के कुछ विद्यानुरागी विशेषज्ञ जैनों के धर्म ग्रंथ आदि की आलोचना न करते, ये यदि उनके कुछ ग्रंथों का प्रकाशन न करते और यदि ये जैनों के प्राचीन लेखों की महत्ता न प्रकट करते तो हम शायद आज भी पूर्ववत ही अज्ञान के अंधकार में ही डूबे रहते ।
-पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी ब्राह्मण धर्म को जैन धर्म ने ही अहिंसा धर्म बताया । ब्राह्मण व हिन्दू धर्म में जैनधर्म के प्रताप से मांस भक्षण व मदिरापान बन्द हो गया। पूर्व काल में अनेक ब्राह्मण जैन पंडित जैन धर्म के धुरन्धर विद्वान हो गए हैं।
-लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक यदि किसी ने भी अहिंसा के सिद्धान्त को सम्पूर्ण रूप से विकसित किया हो, जीवन में उतारा ही तो वह भगवंत महावीर स्वामी ही थे। परन्तु वर्तमान जनसमूह भगवंत के इस सिद्धान्त का अनुसरण करता हुआ नजर नहीं आता है। मैं भगवंत महावीर के शिक्षा वचनों को समझने की अपील करता हूँ और भारपूर्वक कहता हूं कि इस सिद्धान्त का बराबर विचार करो और इसे जीवन में उतारो ।
–महात्मा गांधी (राष्ट्रपिता)