Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
प्रस्तावना
यह कथानक, बहुत लम्बा तो नहीं है, किन्तु, इसमें जो-जो भी रूपक, जिसजिस रूप में दिये गये हैं, वे सटीक, सार्थक और मनोहारी हैं। बावजूद इसके, इस वर्णन को, कथाचरित की उस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जिस श्रेणी में सिद्धर्षि ने उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा को पहुँचाया है। इसलिये, पूर्वोक्त रूपक-परम्परा के सन्दर्भ में, 'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' को, भारतीय रूपक साहित्य का 'प्राद्य-ग्रंथ' मानना पड़ेगा।
उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा : विशेषताएं
सोलह हजार श्लोक परिमाण वाली, इस गद्य-पद्य मिश्रित रूपक कथा का महत्त्व, इसका सम्पादन करते हुये, लब्ध-ख्याति पाश्चात्य-मनीषी डॉ० हर्मन याकोबी ने स्वीकारते हुये कहा था--'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा, भारतीय साहित्य का पहिला और विशद रूपक-ग्रन्थ है।' लाखों की संख्या में बिकने वाली, मिस्टर बनियन की अंग्रेजी रचना 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' पढ़े-लिखे अंग्रेजों में काफी प्रसिद्ध रही है। किन्तु, इस अंग्रेजी रचना में, सुप्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक देग्य इलेविले की कृति-'दी पिलग्रिमेज ऑफ मैन' का बहुत कुछ अनुसरण/अनुकरण किया गया, यह तथ्य, 'दी इंग्लिश लिट्रेचर' के लेखक-द्वय ने स्पष्ट करते हुये बतलाया कि 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' नामक अंग्रेजी रचना (सन् १६७६) फ्रांसीसी-कृति 'दी पिलग्रिमेज ऑफ मैन' से काफी अर्वाचीन है।
ये प्रमाण बोलते हैं-महर्षि सिषि की 'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' मात्र भारतीय साहित्य की ही नहीं, वरन्, विश्व-साहित्य की भी, सर्वप्रथम रूपक रचना है।
, इन कथनों की सापेक्षता में, हम निस्संकोच यह कह सकते हैं-'उपमितिभव-प्रपञ्च कथा' एक ऐसी संस्कृत रचना है, जो, रूपक शैली में लिखी होने पर भी, संस्कृत-वाङमय की गौरवमयी काव्य-परम्परा, और सुविशाल आख्यान/कथा साहित्य श्रेणी की, एक गरिमा-मण्डित कृति मानी जा सकती है।
सिद्धर्षि के इस महाकथा-ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता यह है कि पूरा का पूरा ग्रन्थ, रूपकमय है। ग्रादि से लेकर अन्त तक, एक ही नायक के जन्म-जन्मान्तरों का कथा-विवेचन, इस तरह से किया गया है कि धर्म और दर्शन के विशाल-वाङमय में जो-जो भी प्रमुख जीव-योनियां/गतियां बतलाई गईं हैं, उन सबकी स्वरूप-स्थिति व्यापक-रूप में बतलाने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट होता गया है कि किन-किन कर्मों/ भावों से, जीवात्मा को किस-किस योनि/गति में भटकना पड़ता है । और, किस तरह की मनोवृत्तियां/भावनाएं उन-उन स्थितियों से उसे उबारने में सक्षम/सम्बल बन पाती हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org