Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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(१८)
त्रिलोकप्राप्तिकी प्रस्तावना दशवां भाग, अमम, अटट, त्रुटित, कमल, नलिन, पद्म, पांग, कुमुद, कुमुदांग, नयुत, नयुतांग, पूर्व [पर्व) और पूर्वकोटि । इस मतका उल्लेख तिलोयपण्णत्ति (४,५०२-५०३) में 'केई णिरूवेति' वाक्यके द्वारा किया गया है ।
भोगभूमिजोंकी यौवनप्राप्तिमें यहां सामान्यतः २१ दिनका कालप्रमाण बतलाया है। . परन्तु तिलोयपण्णत्तिमें उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमियों के अनुसार पृथक् पृथक् (४,३७९८०, ३९९. ४००, ४०७-८) क्रमशः २१, ३५ और ४९ दिनोंका कालक्रम बतलाया गया है । यही कालक्रम हरिवंशपुराण' और सागारधर्मामृतमें सामान्य रूपसे ४९ दिन प्रमाण कहा गया है । लोकप्रकाश ( २९-२१४ ) में इसी कालक्रमका निर्देश करते हुए ' तथा हि' कहकर जो श्लोक दिया है वह सागारधर्मामृतमें भी है, जो इस प्रकार है
सप्तोत्तानशया लिहन्ति दिवसान् स्वांगुष्ठमार्यास्ततः, को रिङ्गन्ति ततः पदैः कलगिरो यान्ति स्खलद्भिस्ततः । स्थेयोभिश्च ततः कलागुणभृतस्तारुण्यभोगोद्गताः,
सप्ताहेन ततो भवन्ति सुदृगादानेऽपि योग्यास्ततः ॥ सा. ध. २-६८. (६) ज्योतिर्लोकविभागमें ज्योतिषी देवोंके भेद, उनका निवासस्थान, विमानविस्तरादि, संचारक्रम, जंबूद्वीपादिकमें चन्द्रसंख्या, वीथियां, मेरुसे चन्द्र-सूर्योका अन्तरप्रमाण, उनका परस्पर अन्तर, मुहूर्तगति, दिन-रात्रिप्रमाण, ताप-तमकी परिधियां, चारक्षेत्र, अधिक मास, दक्षिण-उत्तरअयन, आवृत्तियां, विषुप, चन्द्रकी हानि-वृद्धि, प्रहादिकोंका आकार, कृत्तिकादिकोंका संचार, उनके देवता, समय-आवली आदिका प्रमाण, सूर्यका उदय व अस्तगमन, ताराप्रमाण, चन्द्रादिकोंकी आयुका प्रमाण और देवीसंख्या आदिकी प्ररूपणा की गई है।
(७) भवनवासिलोकविभागमें चित्रा-वज्रा आदि १६ पृथिवियों एवं पंकभाग व अब्बहुल भागका निर्देश करके भवनवासी देवोंके भवनोंकी संख्या, जिनभवन, इन्द्रोंके नाम, उनके भवन, परिवारदेव-देविया, आयु, उच्छ्वास एवं आहारकालका प्रमाण तथा मुकुटचिह, इत्यादिकी प्ररूपणा की गई है।
(८) अधोलोकविभागमें रत्नप्रभादिक भूमियोंका बाहल्य, वातवलय, पृथिवीक्रमानुसार प्रस्तारसंख्या, श्रेणिबद्ध व प्रकीर्णक बिलोंकी संख्या, इन्द्रकादिकोंका विस्तार, उनका अन्तर, प्रथम श्रेणिबद्धोके नाम, जन्मभूमियोंका आकार व विस्तारादि, नारकउत्सेध, आयु, आहार,
१ दिवसैरेकविंशत्या पूर्यन्त यौवनेन च । प्रमाणयुक्तसर्वागा द्वात्रिंबल्लक्षणाङ्किताः॥५-२५. २ है. पु. ७,९२-९४. ३ सा. ध. २-६८.
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