Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७५४ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ ७. ५६४
पंचचउठाणछक्का अंककमे सगतिएक्क अंसा य । तियअट्ठेक्कविहत्ता अंतरमिंदूण घाई पंडे ॥ ५६४
१३७
རྗརྟན༢་༥།3。།
१८३
चउणवगयणट्ठतिया अंककमे सुण्णएक्कचारि कला । इगिअडनुगङ्गिभजिदा अंतरमिंदूण कालोदे ॥ ५६५
४१०
३८०९४ |,|
१२८१
एक्कच उट्ठागडुगा अंककमे सत्तछक्कएक्क कला । णवचउपंचविहत्ता अंतरमिंद्रूण पोखरम्मि ॥ ५६६
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२२२२१
५४९
णियणियपढमपहाणं जगदीणं अंतरप्यमाणसमं । नियणियलेस्सगडीओ सव्वमियंकाण पत्तेक्कं ॥ ५६७
(2)
१६७
२२२२१
१७१ ५४९
ती उदी तिसया पण्णरसजुदा य चाल पंचसया । लवणप्प हुदिचउक्के चंद्राणं होंति वीदीओ ॥ ५६८ ३० । ९० । ३१५ । ५४० ।
धातकीखण्ड द्वीपमें चन्द्रोंके बीच पांच और चार स्थानोंमें छह इन अंकों के क्रमसे छयासठ हजार छह सौ पैंसठ योजन और एक सौ तेरासीसे विभक्त एक सौ सैंतीस कलाप्रमाण अन्तर है || ५६४ ॥ ६६६६५÷१५ ।
कालोद समुद्र में चन्द्रों के मध्य चार, नौ, शून्य, आठ और तीन, इन अंकों के क्रमसे अड़तीस हजार चौरानबै योजन और बारह सौ इक्यासीसे भाजित चार सौ दश कला अधिक अन्तर है || ५६५ ॥ ३८०९४२ |
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पुष्करार्द्ध द्वीपमें चन्द्रों के मध्य एक और चार स्थानोंमें दो इन अंकोंके क्रमसे बाईस हजार दो सौ इक्कीस योजन और पांच सौ उनंचास से विभक्त एक सौ सड़सठ कला अधिक अन्तर है || ५६६ || २२२२१६६५ ।
अपने अपने प्रथम पथ और जगतियोंके अन्तर प्रमाणके बराबर सब चन्द्रों से प्रत्येककी अपनी अपनी किरणों की गतियां होती हैं ।। ५६७ ॥
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लवण समुद्रादिक चार क्रमसे तीस, नब्बे, तीन सौ पन्द्रह और पांच सौ चालीस चन्द्रोंकी वीथियां हैं ॥ ५६८ ॥। ३० । ९० । ३१५ । ५४० ।
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