Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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~८.८० अट्ठमो महाधियारो
[७८१ छज्जोयण अट्ठसया पणुवीससहस्स पंचलक्खाणिं | चोइसकलाओ होदि हुसुभद्दणामस्स विक्खंभो।७५
भट्टसया अडतीसा लक्खा चउरो सहस्स चउवण्णा । सुविसाले जोयणया अंसा बावीस बोधग्वा ॥७॥
૮૨૮ / सत्तरिजुदभट्ठसया तेसीदिसहस्स जोयणतिलक्खा । तीसकलाओ सुमणसणामस्स हुवेदि वित्थारं ॥ ७०
३४३८७० |३| बारससहस्स वसय तिउत्तरा जोयणाणितियलक्खा | सत्सकलाओवासो सोमणसेंदस्सणावो॥ ७८
३१२९०३ : पणतीसुत्तरणवसय इगिदालसहस्स जोयणदुलक्खा । पण्णरसकला रुंदं पीदिकरइंदए कहिदो ॥ ७९
२४१९३५ /१५ सत्तरिसहस्स णवसय सत्तट्ठीजोयणाणि इगिलक्खा । तेवीसंसा वासो भाइच्चे इंदए होदि ॥ ८०
सुभद्र नामक इन्द्रकका विस्तार पांच लाख पच्चीस हजार आठ सौ छह योजन और चौदह कला अधिक है ।। ७५ ॥ ५२५८०६३।।
सुविशाल इन्द्रकका विस्तार चार लाख चौवन हजार आठ सौ अड़तीस योजन और बाईस भाग प्रमाण समझना चाहिये ॥ ७६ ॥ ४५४८३८३३ ।
. सुमनस नामक इन्द्रकका विस्तार तीन लाख तेरासी हजार आठ सौ सत्तर योजन और तीस कला प्रमाण है ॥ ७७ ॥ ३८३८७०३३।।
सौमनस इन्द्रकका विस्तार तीन लाख बारह हजार नौ सौ तीन योजन और सात कला प्रमाण जानना चाहिये ॥ ७८ ॥ ३१२९०३४ ।
प्रीतिकर इन्द्रकका विस्तार दो लाख इकतालीस हजार नौ सौ पैंतीस योजन और पन्द्रह कला प्रमाण कहा गया है ॥७९॥ २४१९३५१५ ।
__ आदित्य इन्द्रकका विस्तार एक लाख सत्तर हजार नौ सौ सड़सठ योजन और तेईस कला प्रमाण है ।। ८० ॥ १७०९६७३।।
१द य णादव्यो. २द बवासोमणसे ईवस्स विखंभो.
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