Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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- ९.४० ]
raमो महाधियारो
[ ८७७
जो एवं जाणित्ता झादि परं अप्पयं विसुद्धप्पा | अणुवममपारविसयं' सोक्ख पावेदि सो जीओ ॥ ३३ णा होमि परेणि मे परे णस्थि मज्झामेह किं पि । एवं खलु जो भावइ सो पावइ सव्वकल्लाणं ३४ उद्बोध मज्झलोए ण मे परे णत्थि मज्झमिह किंचि । इइ भावणादि जुत्तो सो पावइ अक्खयं सोक्खं ॥ मदमाणमायरहिदो लोहेण विवजिदो य जो जीवो। णिम्मलसहावजुत्तो सो पावइ अक्खयं ठाणं ॥ ३६ परमाणुपमा वा मुच्छा देहादिएसु जस्स पुणो । सो ण वि जाणदि समयं सगस्स सन्वागमधरो वि ॥ तम्हा णिदिकामो रागं देहेसु कुणदि मा किंचि । देहविभिष्णो अप्पा झायव्वों" इंदियादीदो ॥ ३८ देहत्थो देहादो किंचूणो देहवजिओ सुद्ध । । देहायारो अप्पा झायव्वो इंदियातीदो ॥ ३९ झा जदि नियमादा णाणादो णावभासदे जस्स । झाणं होदि ण तं पुण जाण पमादो हु मोहमुच्छा वा ॥
जो विशुद्ध आत्मा इस प्रकार जानकर उत्कृष्ट आत्माका ध्यान करता है वह जीव अनुपम और अपार विषयिक अर्थात् अनन्तचतुष्टयात्मक सुखको प्राप्त करता है ॥ ३३ ॥
न मैं पर पदार्थोंका हूं और न पर पदार्थ मेरे हैं, यहां मेरा कुछ भी नहीं है; इस प्रकार जो भावना भाता है वह सब कल्याणको पाता है ॥ ३४ ॥
यहां ऊर्ध्व लोक, अधो लोक और मध्य लोक में मेरे पर पदार्थ कोई नहीं हैं, यहां मेरा कुछ भी नहीं है । इस प्रकारकी भावनाओंसे युक्त वह जीव अक्षय सुखको पाता है ॥ ३५ ॥
जो जीव मद, मान व मायासे रहित; लोभसे वर्जित और निर्मल स्वभावसे युक्त होता है वह अक्षय स्थानको पाता है ॥ ३६ ॥
जिसके परमाणु प्रमाण भी देहादिक में राग है वह समस्त आगमका धारी होकर भी अपने समयको नहीं जानता है ॥ ३७ ॥
इसलिये मोक्षके अभिलाषी पुरुषको देहमें कुछ भी राग न करके देहसे भिन्न अतीन्द्रिय आत्माका ध्यान करना चाहिये || ३८ ॥
देह में स्थित, देहसे कुछ कम, देहसे रहित, शुद्ध, देहाकार और इन्द्रियातीत आत्माका ध्यान करना चाहिये ॥ ३९ ॥
जिस जीवके ध्यान में यदि ज्ञानसे निज आत्माका प्रतिभास नहीं होता है तो वह ध्यान नहीं है । उसे प्रमाद, मोह अथवा मूर्छा ही जानना चाहिये ॥ ४० ॥
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१ द ब दिसयं. २ द ब जादि ३ द तेमा, व तम्मा.
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४ द शायजो.
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