Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 585
________________ ९८२] तिलोयपण्णसी ७-१८ ७-१८ खेट १-२५ खेचर ७-२१ १-५२० मानवात कालक कालकेतु कालमंगल काष्ठी कुक्षिनिवास कुभोगभूमि कुमानुष कुमुद कुमुदांग कुरुवंश कुलविद्या कुंभ कृतिका कृष्णराजि केतु ४-२५१३ गगनखण्ड ४-२४७८, २५११ गगनगामिनी ४-२९५ गणधर ४-२९५ गरिमा ४-५५० गर्भ ४-१३० गईतोय २-३४९ गर्भज ७-२६ गर्हण ८-६०२ गारव ७-२१, २२ गांधार चन्द्राभ ४-१३९३ चरक ८-५६२ चरमांगधारी २-२१२ चातुर्वर्ण संघ ४-१५१७, २२८५, २५०८ ७-४७४ चारण क्राद्ध ४-१०३४ ४-१०३४ चारित्रमोह १-३३, ८५ चित्रा ७-२७ ४-१०२७ चिह्न निमित्त ४-१०१२ २-२८९ चिह्न स्वप्न ४-१०१६ ८-६१८ चूर्णि ९-७७ ५-२९३ चैत्य तरु ३-३१, १३५ ९-४९ चैत्यप्रासादभूमि ४-७५१ ४-१४९५, २५०४ चौतीस अतिशय ४-२२८२ ८-२५८ ७-१५ गोत्रनाम केशव छद्मस्थ १-७४ २-२९, गौतम गोत्र १-११५ ग्रंथि ४-९६९, ९७९ ग्राम ४-१०३३ कोश कोष्टमति क्रिया ऋद्धि क्षयोपशम क्षायिक उपभोग क्षायिक दान क्षायिक भोग क्षायिक लाभ १-७२ घनवात १-७२ घनांगुल १-७२ घनोदधि १-७२ घातायुष्क क्षारराशि ७-१७/पातिक क्षीरस क्षीरस्रवी घोरतप ऋद्धि ७-२२ घोरपराक्रम तप ४-१३४, १३९२ जगप्रतर जगश्रेणि जयन्त १-१६९,२६८ जलकेतु ७-२२ १-९३, १३२ जलचर १-१५९, २६८ जलचारण ऋद्धि ८-५४१ जल्लौषधि ऋद्धि ४-१०७० जंघाचारण ४-१०३७ ४-१०५५ जाति विद्या ४-१३८ ४-१०५७ जिनलिंग ४-२५०७ जिनलिंगधारी ८-५६० जीवसमास २-२७२ २-२८० ज्ञानावरण १-७. ज्येष्ठा ५-२८० ज्योतिर्मान् ८-५५७ ज्योतिश्चारण ऋद्धि ४-१०४६ ४-९७१, १००१ ४-१४८३ १-७८ तनुवात १-१६९, २६८ क्षुद्रभाषा क्षुधा क्षेत्र ऋद्धि क्षेत्रमंगल १-५९ चक्षुदर्शन ४-१०८८ चतुरमलबुद्धि चतुरिन्द्रिय १-२१, २४ चतुर्दशपूर्वधर क्षेमकर खेलौषधि ७-१९ चतुर्दशपूर्वित्व ४-६२७ चतुर्दशपूर्वी ४-२०६९ चतुर्वेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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