Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 605
________________ Jain Education International । त्रि. सा. लो. प्र. । त्रि. सा. | विरज लो.. सौवस्तिक | एकजटि | विमल ति.प. विरत वीतशोक निश्चल १..] | निर्दुःख | वर्द्धमान ति.प. विकट | कज्जली अग्निज्वाल अशोक अग्निवाल वितप्तक प्रलम्बक | जलकेतु | विवस्त्र प्रलंब वीतशोक सीमंकर क्षेमकर विशाल नित्यालोक नित्योद्योत ६३ भासुर क्षीरस शाल स्वयंप्रभ अभयंकर स्वयंप्रभ अघ ६५ विजय अवभासक | अघ स्रवण अनिवृत्ति एकजटी वैजयन्त श्रेयस्कर স্ব For Private & Personal Use Only विजय वैजयन्त सीमंकर अपराजित तिलोयपणती जयन्त क्षेमङ्कर जलकेतु महाग्रह ६८ अपराजित आभङ्कर भावग्रह | जयन्त विमल प्रभङ्कर | अन्तरद मंगल विमल अरजस् एकसंस्थान अभयंकर अश्व अर्गल विजयिष्णु | विकस करिकाष्ठ | विरजस् अशोक विकस भावग्रह पुष्पकेतु भावकेतु ३ काष्ठी वीतशोक महाग्रह www.jainelibrary.org

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