Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
मत-भेद
क्रम संख्या विषय गाथांक क्रम संख्या विषय
गाांक १ वातवलय-बाहल्य
१-२८१/१९ गजदन्त शैलोंका विस्तार ४-२०२८ २ शर्कराप्रभादिका बाहल्य २-२३/२० भद्रशालवेदी और वक्षार ३ विजयादि द्वारोंपर स्थित
पर्वतोंका अन्तर १-२०२९ पुरोंका विस्तार
४-७४/२१ सीता व सीतोदाके ४ गंगाकुण्डका विस्तार ४,२१७-२१९/ पांच द्रह - ५ सोलह आभरण ४, ३६३-३६४/२२ सीता व सीतोदाके ६ कुलकर-आयु
४,५०२-३] दक्षिणमें रक्ता व रक्तोदा. १-२३०१ ७ समवसरण भूमि
४-७१९/२३ जलशिखरपर लवण८ मानस्तम्भोंकी उंचाई ४-७७८ समुद्रका विस्तार
४-२४४८ ९ अनुबद्धकेवलि-संख्या ४-१२१४/२४ लवणोदके ऊपर देव१० चतुर्दश रत्नोंकी उत्पत्ति ४-१३८२].
__नगरियां
४-२४५६ ११ नव निधियोंकी उत्पत्ति ४-१३८५
२५ धातकीखंडमें स्थित पर्वता१२ शक राजाकी उत्पत्ति ४,१४९६-९९/२६ मेरुतल-विस्तार ।
दिकोंका विस्तार आदि ४-२५४७
४-२५८१ १३ गुप्त वंश व चतुर्मुखका .
२७ मानुषोत्तर-पर्वतस्थ कटोंराज्यकाल ४-१५०४ का विस्तार
५-२७८३ १४ कमलकर्णिकाका विस्तार
२८ पुष्करद्वीपस्थ कुलाचलाव आयाम ४, १६७०-७१ दिकोंका विस्तार आदि ४-१७९१ १५ शब्दावनि ( शब्दवान् )
२९ रतिकर गिरि नाभिगिरिका विस्तार ४-१७०६ ३० अंजन शैल
५-८२ १६ त्रि. ति. जिनप्रासादका
११ कुण्डल-पर्वतस्थ जिनेन्द्रदेवच्छन्द ४-१८६६ कूट
५-१२८ १७ कूटोंपर स्थित प्रासादोंका
३२ कुण्डल शैल ( लोकविस्तारादि ४-१९७५/ विनिश्चय )
५-१२९ १८ बलभद्र कूटका विस्तार १-१९८२३३ जिनेन्द्रकूट
५-१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org