Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८७६]
तिलोयपण्णत्ती
[९.२५
• अस्थि मम कोइ मोहो बुझो उवजोगमेवमहमेगो । इइ' भावणाहि जुत्तो खवेइ दुट्टकम्माणि ॥ २५
णा होमि परेसिंण मे परे संति णाणमहमेको । इदि जो झायदि झाणे सो मुच्चइ अट्टकम्मेहिं ॥ २६ चित्तविरामे विरमंति इंदिया तेसु विरदेसुं । आदसहावम्मि रदी होदि पुढं तस्स णिचाणं ॥ २७ णाईदेहो ण मणो ण चेव वाणी ण कारणं तेसिं । एवं खलु जो भाओ सो पावइ सासयं ठाणं ॥ २८ देहो व मणो वाणी पोग्गलदव्वप्पगो त्ति णिहिटुं । पोग्गलदव्वं पि पुणो पिंडो परमाणुदवाणं ॥ २९ णाहं पोग्गलमहओ ण दे मया पुग्गला कुदा पिंडं । तम्हा हि ण देहो हं कत्ता वा तस्स देहस्स ॥ ३० एवं गाणप्पाणं दसणभूदं आदिदियमहत्थं । धुवममलमणालंबं भावेमं अप्पयं सुद्धं ॥३. णाहं होमि परेसिं ण मे परे संति णाणमहमेको । इदि जो झायदि झागे सो अप्पाणं हवदि झादा ॥ ३२
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. मोह मेरा कोई नहीं है, एक ज्ञान-दर्शनोपयोगरूप ही मैं जानने योग्य हूं; ऐसी भावनासे युक्त जीव दुष्ट आठ कमाको नष्ट करता है ॥ २५ ॥
___ न मैं पर पदार्थोंका हूं और न पर पदार्थ मेरे हैं, मैं तो ज्ञानस्वरूप अकेला ही हूं; इस प्रकार जो ध्यानमें चिंतन करता है वह आठ कर्मोंसे मुक्त होता है ॥ २६ ॥
चित्तके शान्त होनेपर इन्द्रियां शान्त होती हैं और उन इन्द्रियों के शान्त होनेपर आत्मस्वभावमें रति होती है । पुनः इससे उसे स्पष्टतया निर्वाण प्राप्त होता है ॥ २७॥
न मैं देह हूं, न मन हूं, न वाणी हूं, और न उनका कारण ही हूं । इस प्रकार जो भाव है वह शाश्वत स्थानको प्राप्त करता है ॥ २८ ॥
देहके समान मन और वाणी पुद्गल द्रव्यात्मक पर हैं, ऐसा कहा गया है। पुद्गल द्रव्य भी परमाणु द्रव्योंका पिण्ड है ।। २९ ॥
न मैं पुद्गलमय हूं और न मैंने उन पुद्गलोको पिण्डरूप ( स्कन्धरूप ) किया है । इसीलिये न मैं देह हूं और न उस देहका कर्ता ही हूं ॥ ३० ॥
इस प्रकार ज्ञानात्मक, दर्शनभूत, अतीन्द्रिय, महार्थ, नित्य, निर्मल और निरालम्ब शुद्ध आत्माका चिन्तन करना चाहिये ॥ ३१ ॥
न मैं पर पदार्थों का हूं और न पर पदार्थ मेरे हैं, मैं तो ज्ञानमय अकेला हूं, इस प्रकार जो ध्यानमें आत्माका चिन्तन करता है वह ध्याता है ॥ ३२ ॥
१द दुझोउवजोगमेदमेवमहमेगो, ब वुभो उवज्जोगमेवमहमेगो. २द ब इह. ३द ब सिंति. ४दब इंदियासु. ५दब दवं परो. ६द ब पोग्गलधम्म.
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