Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 576
________________ भौगोलिक-शब्द-सूची [९७३ श्रीवृक्ष श्रीसंचय श्रीसौध श्रेणीबद्ध श्वेतकेतु सनत्कुमार सप्तच्छद समुदित सरिता सर्वतोभद्र सर्वतोभद्रा सर्वरत्न सर्वार्थपुर सर्वार्थवन सर्वार्थसिद्धि सहकारवन सहस्रार सहेतुकवन संघात संजयन्त संज्वलित संप्रज्वलित संभ्रान्त संवाहन संस्थित साकेत सागर. सागरचित्र सिद्ध कूट सिद्धक्षेत्र सिद्धान्त सिद्धार्थ वन सिद्धिक ५-१६९, ८-९१ सिंह ४-१६६२, १७३२ सिंहध्वज ४-११९ सिंहपुर २-३६ सिंहपुरी ४-११२ | सीता सीतोदा सीमन्तक १-१५९, ८-१२० सुकच्छा ८-३९७ सुखावह ८-९४ सुगंधा ४-२२०० सुगंधिनी ८-९२, ३०१ सुदर्शन ५-७८ सुधर्मसभा ४-२७६९, ५-१५६ सुपद्मा ४-१२० सुप्रभ १-४६५ सुप्रभा ४-५२२, ८-१७ सुप्रबुद्ध ४-६६५ सुभद्र ५-१६०, ८-१५ सुमनस ४-६५५ सुमुखी २-४१, १२६ सुरपतिकान्त ४-११५ सुरम्यका २-४३, १३९ सुर २-४३, १४० सरसमिति २-४० ४-२२३९ | सुराकूट सुलस द्रह ४-५२७ सुवत्सा ४-२०६०, ८-९४ सुवप्रा ४-१९७० सुवर्णकूट ४-१४७, १६३२ सुवर्णकूला १-२७८ सुविशाल ८-९६ ८-९१, सूर्य पर्वत ४-२२१३ ४-११२ सूर्यपुर ४-५३६ सूर्याभ ४-२२९९ सोम ८-१४, ३०१ ४-२११६, २०६३ सोमक ८-९३ ४-२१०३, २२१६ सोमरूप ८-१२४ २-४०, १०८ सोमार्य ८-१२४ ४-२२०६ सौगन्धी ४-२७६६ ४-२२१३ सौधर्म ८-१२० ४-२२०९ सौमनस ४-१८०६ ४-१२४ सौमनस गिरि ४-२०१५ ४-१२४,८-१६ सौमनस वन ४-१९३७ ५-१९९ सौम्य ४-२२०० स्कन्धप्रभा ४-१३२८ ४-२१५३, ५-१२३ स्तनक २-४१,१२१ ५-७८ स्तनलोलुक २-४२,१३१ -८-१६ स्फटिक २-१७, ४-२०५८, ५-१४५, ८-१६ ५-१५०,८-१३ -१६ स्वयंप्रभ ४-१८४०, ५-१६०, ४-११७ २३८,८-२९८ ४-१२० स्वयंप्रभा ५-१७७ २२०७ स्वयंभूरमण ५-२२, २३८ ८-१३ स्वस्तिक ४-२०४५, ५-१५३ ४-१६३२ स्वस्तिक गिरि ४-२१३० स्वस्तिकदिशा ५-१४५ ४-२०९१ ४-२२०७ ४-२२०९ हरि ४-११६ हरिकान्त कूट -१७२४ ४-२३६२ हरिकान्ता ४-१७४६ ८-१६ हार कूट ४-१७२४, १७५० हरिताल ५-२६ ४-२२९७ हरित् ४-१७७. ४-२०९१ हरिवर्ष ४-१७२४, १७३८ ८-९४ हरिसह कूट ४-२१६१ ४-२४७१ हस्तिनागपुर ४-१५१ ८-९९ स्वरान्त ४-६४४ सुसीमा ४-२१०३ सूर द्रह सिंदूर ५-२५ सूर्य . ४-२५२, २५९ सूर्य द्वीप सिंधु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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