Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 544
________________ ४-१४४० २-३२३ ४-३२५ ४-२८१० २-३२२ ४-१५७७ ५-३१० ८-२६१ ५-४५ पादूर्ण जोयणयं पायारपरिगदाई पावारवलहिगोउर पायालते णियणिय पारावयमोराणं पालकरज्ज सहि पावं मलं ति भण्णा पाविय जिणपासादं पावेणं णिरयबिले पासजिणे चउमासा पासजिणे पणदंडा पासजिणे पणवीसा पासजिणे पणुवीसं पासम्मि थंभरुंदा पासम्मि पंचकोसा पासम्मि मेरुगिरिको पासरसगंधवण्णपासरसरूवसद्धणि पासरसवण्णवररणि पासंडसमयचत्तो पासादाणं मझे पासादावारेसुं पासादो मणितोरण पासिदियसुदणाणापासुक्कस्लखिदीदो पासे पंचच्छहिदा पियदसणो पभासो पीयूसणिज्झरणिहं जिण पीढत्तयस्स कमसो पीढस्स चउदिसासुं गाधानुक्रमणिका ४-५१ ( पीढो सच्चइपुत्तो ४-२५ | पीदिंकरमाइ ५-१६५४ | पीलिज्जते केई ४-२४४७ पुक्खरणीपहुदीणं ८-२५१ पुक्खरवरद्धदीवे ४-१५०६ पुच्छिय पलायमाणं १-१७ पुट्ठी चउवीसं ३-२२० पुट्ठीए होति अट्ठी २-३१३ पुढविप्पहुदिवणप्फदि ४-६७८ पुढवीआइच उक्के ४-८७६ पुढवीसाणं चरियं ४-८५५ पुण्णप्पुण्णपहक्खा ४-८८३ पुण्णम्मि य णवमासे ४-६२३ पुण्णवसिट्ठजलप्पह ४-७२२ पुण्णं पूदपवित्ता ४-२०१९ पुण्णायणायकुज्जय ४-२७८ पुण्णायणायचंपय ३-२३७ पुण्णिमए हेट्ठादो ४-८४ पुण्णेण होइ विहओ ४-२२५३ पुत्ते कलत्ते सजणम्मि मित्ते ८-३७४ । पुफिदकमलवणेहिं ४-२९ पुष्फिदपंकजपीढा पुप्फोत्तराभिधाणा ४-९८९ पुरदो महाधयाणं पुरिमावलीपवण्णिद ४-७७० पुरिसा वरमउडधरा ४-२६०२ पुरिसित्थीवेदजुदं ४-९४० पुरिसित्थीवेदजुदा ४-७७१ पुरुसा पुरुसत्तमसप्पुरुस४-१८९८ पुब्वगदपावगुरगो ४-१९०३ पुवज्जिदाहि सुचरिद ४-१९११ पुम्वण्हे अवरण्हे ४-१९०४ पुग्वदिसाए चूलिय पुवदिसाए जसस्सदि ४-८६९ | पुवदिसाए पढम ८-२७६ पुवदिसाए विजय ४-१८९९ | पुवदिसाए विसिट्ठो ४-८०० ४-१५७ ४-२४३८ ९-५२ २-३६६ ४-२३१ ४-५२४ ४-१९१४ ८-९७ ४-३५९ ४-४१५ ८-६६० ६-३६ ४-६२० ८-३७७ ५-१०२ ४-१८३६ ५-२७७१ ५-२०२ ४-४२ पीठम्सुवरिमभागे पीठाण उवरि माणथंभा पीढाणं परिहीओ पीढाणीए दोपणं पीडोपरि बहुमसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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