Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 549
________________ तिलोयपण्णत्ती भयजुत्ताण णराण भरहक्खेत्तम्मि इमे भरहखिदीए गणिदं भरहखिदीबहुमझे भरहम्मि होदि एक्का भरहवसुंधरपहदि ४.४९२ | भग्वाभब्वा एव हि भब्वाभवा छस्सम्मत्ता ४-१९२१ | भंभामुइंगमद्दल भंभामुयंगमद्दल ४-१०२ भागभजिदम्मि लद्धं ४-२७१६ भायणअंगा कंचण . ४-२९२४ भावणणिवासखेतं भावणलोयस्साऊ भावणवेतरजोइस भावणवंतरजोइसिय ५-८१६ ४-२००६ ४-१६४ ४-२८०४ ४-२३७८ ४-२५६८ ४-१७१७ ४-१७३८ ४-१६७ ४-१८२७ ४-१४०१ ८-४०० ४-१२८१ भावणसुरकण्णाओ भावसुदपजयहिं भावेखं तियलेस्सा भासइ पसण्णदिओ भासंति तस्स बुद्धी भिंगा भिंगणिहक्खा भिंगारकलसदप्पण भरहस्स इसुपमाणे भरहस्स धावपटुं भरहस्स मूलरुंद भरहादिसु कूडेसु भरहार्दिस विजयाणं भरहादी णिसहंता भरहादीविजयाग भरहावणिरुंदादो भरहावणीय बाणे भरहे कूडे भरहो भरहे खेत्ते जादं भरहे छलक्खपुवा भरहेरावदभूगद भरहो सगरो मघओ भरहो सगरो मघवो भवणखिदिप्पणिधीसु भवणसुराणं अवरे भवणं भवणपुराणि भवणं वेदी कूडा भवणाणं विदिसासुं भवणा भवणपुराणि भवणुच्छेहपमाणं भवणेसु समुप्पण्णा भवणोवरि कूडम्मि य भवसयदसणहेदूं भवकुमुदेक्कचंदं भग्वजणमोक्खजणणं २-२८॥ ४-१५२९ ४-१०१९ ४-१९६२ १-११२ ३-२२३ ४-१५६ ४-८४४ ३-१८४ ४-१६९३ ४-१८६९ ४-१८८० ८-५८६ ४-१८८५ ३-४ ४-२१८६ ३-२२ ८-४५६ भिंगाररयणदप्पण ३-२३९ | भिपिणदणीलकेसा ४-२२९ भिणिदणीलमरगय ४-९२६ भिष्णिदणीलवण्णा भित्तीओ विविहाओ भीदीए कंपमाणो भीममहभीमरुद्दा १-८७ भीममहभीमविग्ध १-५४ | भीमावलिजिदसत्तू ४-१८७२ ८-२५३ ४-१८६२ २-३१४ ४-१४६९ ६-४४ . भध्वजमाणंदयरं भन्वाण जेण एसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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