Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 558
________________ गाथानुक्रमणिका ८-१२९ "-१३५९ ४-२७१६ ४-२४६॥ ४-२७८२ ६-२ ४-२३३१ १-९० विसुद्धलेस्साहि सुराउबंध विस्साणं लोयाणं विहगाहिवमारूढो विंदफळं संमेलिय विंसदिगुणिदो लोओ वीणावेणुप्पमुहं वीणावेणुझुणीओ वीयणयसयलउड्डी वीयण्डसरिससंधी वीरजिणे सिद्धिगदे वीरंगजाभिधाणो वीसकदी पुन्वधरा वीस दस चेव लक्खा वीसदिवच्छरसमधिय वीससहस्सजुदाई वीससहस्सभधिया वीससहस्सं तिसदा वीससहस्सा वस्सा बीसस्स दंडसहियं वीसहदवासलक्ख बीसबुरासिउवमा वीसाहियकोससयं . वीसाहियसयकोसा वीसुत्तरवाससदे वीसुत्तरसत्तसया वीसुत्तराणि होति हु वीसूणबेसयाणि वीहीदोपासेसु वेकुब्धि छस्सहस्सा वेगुम्धि सगसहस्सा वेडेदि तस्स जगदी बेटेदि विसयहे, वेणुदुगे पंचदलं वेदकुमारसुरो वेदीए उच्छेहो बेदीमो वेत्तियाओ बेदीणभंवरए ३-२४२ | वेदीण रुंद दंडा -२४ वेदीणं बहुमो ५-९४ - वेदोण विच्चाले १-२०२ वेदीदोपासेसुं १-१७३ वेदी पढमं विदियं ८-२५९ येयउत्तरदिसा ८-५९२ वेरुलियअसुमगब्भा ७-४६५ वेरुलियजलहिदीवा ७-१८ वेरुलियमयं पढम ४-१४९६ बेरुलियाजदसोका ४-१५२१ वेरुलियरुचकरुचिरं वेलंधरवेंतरया ४-१४४७ चलंबणामकूडे वेसमणणामकूडो वेंतरणिवासखेत्तं वेंतरदेवा बहुओ ४-१४९३ वेंतरदेवा सम्वे ४-१४०४ | वोच्छामि लयलईए २-२४५ । वोलीणाए सायर ४-५६८ व्यासं तावत्कृत्वा ८-५०५ ४-८५४ ४-८८२ सउरीपुरम्मि जादो ४-१५०० सकणिववासजुदाणं सक्कदिगिंदे सोमे ८-१८२ सक्कदुगम्मि य वाहण सक्कदुगम्मि सहस्सा ४-७२८ सक्कदुगे चत्तारो ४-११४२ सक्कदुगे तिण्णिसया ४-११४० सक्करवालुवपंका सक्कस्स मंदिरादो ४-६२७ सक्कस्स लोयपाला ३-१४५ सक्कादीण वि पक्खं ४-१६८ सक्कादो सेसेसुं ४-२००६ सक्कीलाणगिहाणं ५-२३९० | सक्कीसाणा पढौ १-४२ | सकुलिकण्णा कण ४-५४७ ४-१५०१ ८-५३४ ८-२७८ ८-३०८ ८-३५९ २-२१ ४-१५ ४-१९९६ १-१०२३ ८-५१५ ८-३९८ ८-१८५ १-२३८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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