Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. १२६] अट्ठमो महाधियारो
[000 तत्तो छज्जुगलाणिं पत्तेक्कं अद्धअद्धरज्जूए । एवं कप्पा कमसो कप्पातीदा य ऊणरज्जूए ॥ ११९ .
१४|१४|१४|१४|१४|१४|१४|१४|
। एवं भेदपरूवणा सम्मत्ता। सोहम्मीसाणतणक्कुमारमादिबम्हलंतवया । महसुक्कसहस्सारा आणदपाणदयारणच्चुदया ॥ १२० एवं बारस कप्पा कप्पातीदेसु णव य गेवेज्जा । हेटिमहेट्ठिमणामो हेटिममझिल्ल हेहिमोवरिमो॥ १२॥
मज्झिमहेट्ठिमणामो मज्झिममज्झिम य मज्झिमोवरिमो।
उवरिमहेट्ठिमणामो उवरिममज्झिम य उवरिमोवरिमो ॥ १२२ आइ च्चइंदयस्स य पुवादिसु लच्छिलच्छिमालिणिया । वइरो वइरोइणिया चत्तारो वरविमाणाई ॥ १२॥ अण्णदिसाविदिसासु सोमज्जं सोमरूवअंकाई । पडिहं पइण्णयाणि य चत्तारो तस्स णादव्वा ॥ १२४ विजयंतवइजयंतं जयंतअपराजिदं च णामाणिं । सम्वट्ठसिद्धिणामे पुवावरदक्खिणुत्तरदिसाए ॥ १२५ सवट्ठसिद्धिणामे पुवादिपदाहिणेण विजयादी । ते होंति वरविमाणा एवं केई परूवेति ॥ १२६
पाठान्तरम् ।
इससे आगे छह युगलोंमेंसे प्रत्येक आधे आधे राजुमें है । इस प्रकार कल्पोंकी स्थिति बतलाई गई है । कल्पातीत विमान ऊन अर्थात् कुछ कम एक राजु हैं ॥ ११९ ॥
सौ. ई. रा. १३, सा. मा. रा. १३, ब्र. ब्रम्हो. रा. ३, लां. का. ३, शु. महा. ३, श. स. ६, आ. प्रा. ३, आ. अ. ई, कल्पातीत रा. १ ।
इस प्रकार भेदप्ररूपणा समाप्त हुई । सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतव, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इस प्रकार ये बारह कल्प हैं। कल्पातीतोंमें अधस्तन-अधस्तन, अधस्तन मध्यम, अधस्तन-उपरिम, मध्यम-अधस्तन, मध्यम-मध्यम, मध्यम-उपरिम, उपरिम-अधस्तन, उपरिममध्यम और उपरिम-उपरिम, ये नौ ग्रैवेय विमान हैं ॥ १२०-१२२ ॥ .
___ आदित्य इन्द्रककी पूर्वादिक दिशाओंमें लक्ष्मी, लक्ष्मीमालिनी, वज्र और वैरोचिनी, ये चार उत्तम श्रेणीबद्ध विमान तथा अन्य दिशा-विदिशाओंमें सोमार्य, सोमरूप, अंक और स्फटिक, ये चार उसके प्रकीर्णक विमान जानना चाहिये ॥ १२३-१२४ ॥
सवार्थसिद्धि नामक इन्द्रकके पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशामें विजयंत, वैजयंत, जयंत और अपराजित नामक विमान हैं ॥ १२५॥
सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रककी पूर्वादि दिशाओंमें प्रदक्षिणरूप वे विजयादिक उत्तम विमान हैं । इस प्रकार कोई आचार्य प्ररूपण करते हैं ॥ १२६॥
पाठान्तर ।
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