Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८२६] तिलोयपण्णत्ती
[८. ३९६इंदप्पहाणपासादपुव्वदिब्भागपहुदिसंठाणा । चत्तारो पासादा पुव्वोदिदवण्णणेहिं जुदा ॥ ३९६ वेरुलियरजदसोका मिसक्कसारं च दक्खिणिदेसु । रुचक मंदरसोका सत्तच्छदयं च उत्तरिंदेसुं ॥ ३९७ सक्कीसाणगिहाणं पुरदो छत्तीसजोयणुच्छेहा । जोयणबहलविखंभा बारसधारा' हुवंति वज्जमया ॥ ३९८ पत्तेकं धाराणं वासो एक्केककोसपरिमाणं' । माणत्थंभसरिच्छे सेसत्थंभाण वण्णणयं ॥ ३९९ भरहेरावदभूगदतित्थयरबालयाणाभरणाणं । वरस्यणकरंडेहिं लंबतेहिं विरायते ॥ ४०० - मूलादो उवरितले पुह पुह पणुचीसकोसपरिमाणा। गंतूर्ण सिहरादो तेत्तियमोदरिय होति ह करंडा॥४०॥
२५ । २५। पंचसयचावरुंदा पत्तेक्कं एक्ककोसदीहत्ता । ते होंति वरकरंडा णाणावररयणरालिमया ॥ ४०२
५०० । को । ते संखेज्जा सधे लंबता रयणसिक्कजालेसं । सक्कादिपूजणिजा भणादिणिहणा महारम्मा ॥ ४०३
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इन्द्रोंके प्रधान प्रासादके पूर्वदिशाभागादिमें स्थित और पूर्वोक्त वर्णनोंसे युक्त चार प्रासाद होते हैं ॥ ३९६ ॥
दक्षिण इन्द्रोंमें वैडूर्य, रजत, अशोक और मृषत्कसार तथा उत्तर इन्द्रोंमें रुचक, मन्दर, अशोक और सप्तच्छद, ये चार प्रासाद होते हैं ॥ ३९७ ॥
सौधर्म और ईशान इन्द्रके ग्रहोंके आगे छत्तीस योजन ऊंचे, एक योजन बाहल्य व विष्कम्भसे सहित बज्रमय बारह धाराओंवाले [ स्तम्भ ] होते हैं ॥ ३९८ ॥
उन धाराओंमें प्रत्येक धाराका व्यास एक एक कोश प्रमाण है। शेष स्तम्भोंका वर्णन मानस्तम्भोंके सदृश है ॥ ३९९ ॥
[ ये स्तम्भ ] भरत और ऐरावत भूमिके तीर्थंकर बालकोंके आभरणोंके लटकते हुए उत्तम रत्नमय पिटारोंसे विराजमान हैं ॥ ४०॥
___ मूलसे उपरिम तलमें पृथक् पृथक् पच्चीस कोश प्रमाण जाकर और शिखरसे इतने ही उतरकर ये करण्ड होते हैं ॥ ४०१ ॥ मूल २५, शिखर २५ ।
नाना उत्तम रत्नोंकी राशि स्वरूप उन श्रेष्ठ करण्डोंमेंसे प्रत्येक पांच सौ धनुष विस्तृत और एक कोश लम्बा होता है ॥ ४०२ ॥ विस्तार ५०० ध., दीर्घता १ को.।
रत्नमय सींकोंके समूहोंमें लटकते हुए वे सब संख्यात करण्ड शक्रादिसे पूजनीय, अनादिनिधन और महा रमणीय होते हैं ॥ ४०३ ॥
३ द ब बाराणं.
४ द ब कोसापरिमाणं.
१ द बहलाकंभा. २द ब दारा. ५६ ब माणद्धं च सरिच्छं. ६६ बबालइंदाणं.
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