Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८२८) तिलोयपणत्ती
[८. ११२अडजायणउम्विद्धो तेत्तियवासो हुवंति पत्तेक्कं । सेसिंदे पासादा सेसो पुर्व व विण्णासो ॥ ४१२
८1८। इंदप्पासादाणं समंतदो होति दिव्वपासादा । देवीवल्लहियाणं णाणावररयणकणयमया ॥ ४१३ देवीभवणुच्छेहा सक्कदुगे जोयणाणि पंचसया । माहिंददुगे पण्णासब्भहियाचारिसमजुत्ता ॥४१४
५००। ४५० । बम्हिदलंतविंदे महसुक्किदे सहस्सयारिंदे । आणदपहुदिचउक्के कमसो पण्णासहीणाणि ॥ ४१५
४०० । ३५० । ३०० । २५० । २०० । देवीपुरउदयादो वल्लहियामंदिराण उच्छे हो । सवसुं इंदेसुं जोयणवीसाधिओ होदि ॥ ४१६ उच्छेहदसमभागे एदाणं मंदिरेसु विक्खंभा । विक्खंभदुगुणदीहं वासस्सद्धं पि गाढत्तं ॥ ४१७ सम्वेसु मंदिरेसु उववणसंडाणि होति दिव्वाणि । सब्वउडुजोगपल्लवफलकुसुमविभूदिभरिदाणि ॥ ४१८ पोक्खरणीवावीओ सच्छजलाओ विचित्तरूवाओ। पुफिदकमलवणाओ एक्केक्के मंदिरे होतिं ॥ ४१९
शेष इन्द्रोंके प्रासादोंमेंसे प्रत्येक आठ योजन ऊंचा और इतने ही विस्तारसे सहित है । शेष विन्यास पहिलेके ही समान है ।। ४१२ ॥ उत्सेध ८, विस्तार ८ यो. ।
इन्द्रप्रासादोंके चारों ओर देवी और बल्लभाओंके नाना उत्तम रत्न एवं सुवर्णमय दिव्य प्रासाद हैं ॥ ४१३ ॥
सौधर्म और ईशान इन्द्रकी देवियोंके भवनोंकी उंचाई पांच सौ योजन तथा माहेन्द्र व सानत्कुमार इन्द्रकी देवियोंके भवनोंकी उंचाई चार सौ पचास योजन है ॥ ४१४ ॥
ब्रह्मेन्द्र, लांतवेन्द्र, महाशुक्र इन्द्र, सहस्रार इन्द्र और आनत आदि चार इन्द्रोंकी देवियोंके भवनोंकी उंचाई क्रमसे पचास योजन कम है ॥ ४१५ ॥
ब्र. १००, लां. ३५०, म. ३००, स. २५०, आनतादि २०० ।
सब इन्द्रोंमें वल्लभाओंके मंदिरोंका उत्सेध देवियोंके पुरोंके उत्सेधसे बीस योजन अधिक है ॥ ४१६ ॥
इनके मंदिरोंका विष्कम्भ उत्सेधके दशवें भागप्रमाण, दीर्घता विष्कंभसे दूनी और अवगाढ़ व्याससे आधा है ॥ ४१७ ॥
सब मंदिरोंमें समस्त ऋतुओंके योग्य पत्र, फूल और कुसुम रूप विभूतिसे परिपूर्ण दिव्य उपवन-खण्ड होते हैं ॥ ४१८ ॥
एक एक मंदिर में स्वच्छ जलसे परिपूर्ण, विचित्र स्वरूपवाली और पुष्पित कमलवनोंसे संयुक्त पुष्करिणी वापियां हैं ॥ ४१९ ॥
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