Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८५२) तिलोयपण्णत्ती
[८.५५२अत्तियजलणिहिउवमा जो जीवदि तस्स तेत्तिएहिं च । वरिससहस्सेहि हवे माहारो पणुदिणाणि पल्लमिदे॥ पबिंदाणं सामाणियाण तेत्तीससुरवराण च । भोयणकालपमाणं णियणियइंदाण सारिच्छं ॥ ५५३ इंदप्पहुदिचटके देवीणं भोयणम्मि जो समओ | तस्स पमाणपरूवणउवएसो संपहि पणटो ।। ५५४॥ सोहम्मिददिगिंदे सोमम्मि जमम्मि भोयणावसरो । सामाणियाण ताणं पत्तेक पंचवीसदलदिवसा ॥ ५५५
सबलचरित्ता कूरा उम्मग्गट्ठा णिदाणकदभावा । मंदकसायाणुरदा बंधते' अप्पइद्धिअसुराउं ।। ५५६ दसपुग्वधरा सोहम्मपहुदि सम्वट्ठसिद्धिपरियंतं । चोइसपुज्वधरा तह लंतवकप्पादि वचते ॥ ५५७ सोहम्मादीमचुदपरियंत जंति देसवदजुत्ता । चउविहदाणपयहा अकसाया पंचगुरुभत्ता ॥ ५५८ सम्मत्तणाणभजवलजासीलादिएहि परिपुण्णा । जायते इत्थीओ जा अच्चुदकप्पपरियंतं ॥ ५५९
जो देव जितने सागरोपम काल तक जीवित रहता है उसके उतने ही हजार वर्षों में आहार होता है । पल्य प्रमाण काल तक जीवित रहनेवाले देवके पांच दिनमें आहार होता है ॥ ५५२ ॥
प्रतीन्द्र, सामानिक और त्रायस्त्रिंश देवोंके आहारकालका प्रमाण अपने अपने इन्द्रोंके सदृश है ॥ ५५३ ॥
इन्द्र आदि चारकी देवियोंके भोजनका जो समय है उसके प्रमाणके निरूपणका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ॥ ५५४ ॥
सौधर्म इन्द्रके दिक्पालोंमेंसे सोम व यमके तथा उनके सामानिकों से प्रत्येकके भोजनका अवसर पच्चीसके आधे अर्थात् साढ़े बारह दिन है ॥ ५५५ ॥ २५ दिन ।
दूषित चरित्रवाले, कर, उन्मार्गमें स्थित, निदानभावसे सहित और मन्द कषायोंमें अनुरक्त जीव अल्पार्द्धक देवोंकी आयुको बांधते हैं ॥ ५५६ ॥
दश पूर्वके धारी जीव सौधर्म आदि सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त तथा चौदह पूर्वधारी लांतव कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त जाते हैं ॥ ५५७ ॥
चार प्रकारके दानमें प्रवृत्त, कषायोंसे रहित व पंच गुरुओंकी भक्तिसे युक्त, ऐसे देशव्रत संयुक्त जवि सौधर्म स्वर्गको आदि लेकर अच्युत स्वर्ग पर्यन्त जाते हैं ॥ ५५८ ॥
सम्यक्त्व, ज्ञान, आर्जव, लज्जा एवं शीलादिसे परिपूर्ण स्त्रियां अच्युत कल्प पर्यन्त जाती हैं ।। ५५९ ॥
१९ सामाणियलोओ. २६ ब बढ़ते ३ व अप्पद्विअ. ४६ अजसीला; व अमावसीला.
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