Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८७०] तिलोयपणत्ती
। ८. ६९७ एकपलिदोमाऊ उप्पाडेदु धराए छखंडे । तग्गदणरतिरियजणे मारेदुं पोसितुं सको ॥ १९७ उवहिउवमागजीवी पल्लट्टेदुं च जबुंदीवं हितग्गदणरतिरियाणं मारे, पोसिद् सक्को ॥ ६९८ सोहम्मिदो णियमा जंबूदीवं समुक्खिवदि एवं । केई आइरिया इय सत्तिसहावं परूवंति ॥ ६९९
सत्ती गदा।
पाठान्तरम् । भावणवंतरजोइलियकप्पवासीणमुवत्रादे । सीदुण्डं अञ्चित्तं संउदया होति सामण्णे ॥ ००० एदाण चउविहाणं सुराण सव्वाण होंति जोणीओ । चउलक्खा हु विसेसे इंदियकल्लादरूवाओ (?) ।।
जोणी समत्ता। सम्मइंसणसुद्धिमुजलयर संसारणिण्णासणं, सम्मण्णाणमणंतदुक्खहरणं चारंति जे संततं । णिब्वाहंति विसिट्टसीलसहिदा जे सम्म चारित्तयं, ते सग्गे सुविचित्तपुण्णजणिदे भुंजति सोक्खामयं ।।
एक पत्योपम प्रमाण आयुवाला देव पृथिवीके छह खंडोंको उखाड़ने के लिये और उनमें स्थित मनुष्य व तियोंको मारने अथवा पोषनके लिये समर्थ है ॥ ६९७ ॥
___ सागरोपम प्रमाण काल तक जीवित रहनेवाला देव जम्बूद्वीपको भी पलटनेके लिये और उसमें स्थित मनुष्य व तिर्यंचोंको मारने अथवा पोषनेके लिये समर्थ है ॥ ६९८ ॥
सौधर्म इन्द्र नियमसे जम्बूद्वीपको फेंक सकता है। इस प्रकार कोई आचार्य शक्तिस्वभावका निरूपण करते हैं ॥ ६९९ ॥
पाठान्तर । शक्तिका कथन समाप्त हुआ। __ भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासियोंके उपपाद जन्ममें शीतोष्ण, अचित और संवृत योनि होती है । इन चारों प्रकारके सब देवोंके सामान्य रूपसे ये योनियां होती हैं। विशेष रूपसे चार लाख योनियां होती हैं ।। ७००-७०१ ।।
योनियोंका कथन समाप्त हुआ। जो अतिशय उज्ज्वल एवं संसारको नष्ट करनेवाली सम्यग्दर्शनकी शुद्धि तथा अनन्त दुःखको हरनेवाले सम्यग्ज्ञानका निरन्तर आचरण करते हैं, और जो विशिष्ट शीलसे सहित होकर सम्यक्चारित्रका निर्वाह करते हैं वे विचित्र पुण्यसे उत्पन्न हुए स्वर्गमें सौख्यामृतको भोगते हैं ॥ ७०२॥
१६ ब दीवम्मि. २द ब सोहम्मिदा. ३६-व-प्रत्योर्गाथाद्वयमैतनवममहाधिकारे देशमगाथाया अप्रै समुपलभ्यते. ४द ब कप्पवासीणणमुववादे.
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