Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. ४४०] सत्तमो महाधियारो
[८३१ संखेजजोयणाणिं पुह पुह गंतूण णंदणवणादो । सोहम्मादिदिगिंदाणं कीडणणयराणि चेटुंति ॥ ४३३ बारससहस्सजोयणदीहत्ता पणसहस्सविक्खंभा । पत्तेक्कं ते णयरा वरवेदीपहुदिकयसोहा ॥ ४३४
१२०००/५०००। गणियामहत्तरीणं समचउरस्सा पुरीओ विदिसासं। एक्कं जोयणलक्खं पत्तेक्कं दीहवासजुदा ॥ ४३५
१००००० । १००००० । णयरेसुं पासादा दिम्वविविहरयणमया । णञ्चंतविचित्तधया णिरुवमसोहा विरायंति ॥ ४३६ जोयणसयदीहत्ता ताणं पण्णासमेत्तवित्थारा । मुहमंडवपहुदीहिं विचित्तरूवेहिं संजुत्ता ॥ ४३७ वालुगपुप्फगणामा याणविमाणाणि सक्कजुगलम्मि । सोमणसं सिरिरुक्खं सणक्कुमारिंददुदयम्मि ॥ ४३८ बम्हिंदादिचउक्के याणविमाणाणि सव्वदोभद्दा । पीदिकरम्मकणामा' मणोहरा होंति चत्तारि ॥ ४३९ भाणदपाणदइंदे लच्छीमादितिणामदो होदि | आरणकप्पिंददुगे याणविमाणं विमलणामं ॥ ४४.
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. नन्दन वनसे पृथक् पृथक् संख्यात योजन जाकर सौधर्मादि इन्द्रोंके लोकपालोंके क्रीड़ानगर स्थित हैं ॥ ४३३ ॥
उत्तम वेदी आदिसे शोभायमान उन नगरोंमेंसे प्रत्येक बारह हजार योजन लम्बे और पांच हजार योजन प्रमाण विस्तारसे सहित हैं ॥ ४३४ ॥ लं १२०००, वि. ५०००।
विदिशाओंमें गणिकामहत्तरियोंकी समचतुष्कोण नगरियां हैं । इनमेंसे प्रत्येक एक लाख योजन प्रमाण दीर्घता व विस्तारसे युक्त है ॥ ४३५ ॥ दी. १०००००, वि. १००००० यो.।
सब नगरोंमें नाचती हुई विचित्र ध्वजाओंसे युक्त और अनुपम शोभाके धारक दिव्य विविध रत्नमय प्रासाद विराजमान हैं ॥ ४३६ ॥
ये प्रासाद एक सौ योजन दीर्घ, पचास योजन प्रमाण विस्तारसे सहित, और विचित्ररूप मुखमण्डपादिसे संयुक्त हैं ॥ ४३७ ॥
शक्रयुगल (सौधर्म व ईशान इन्द्र) में वालुक और पुष्पक नामक यान विमान तथा सानत्कुमारादि दो इन्द्रोंमें सौमनस और श्रीवृक्ष नामक यान विमान होते हैं ॥ १३८ ॥
ब्रह्मेन्द्रादिक चारके सर्वतोभद्र, प्रीतिक (प्रीतिकर ), रम्यक और मनोहर नामक चार यान विमान होते हैं ॥ ४३९ ॥
आनत और प्राणत इन्द्रके लक्ष्मी मादिन्ति (1) नामक यान विमान तथा आरण कल्पेन्द्र गुगलमें विमल नामक यान विमान होते हैं ॥ ४४० ॥
१द व पीदिंकररम्मकणामा; शोलापुरप्रतौ तु गृहीतः पाठः।
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