Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. ५४१] अट्ठमो महाधियारो
[ ८९ सागरोवमाणि, भूमी अद्धसागरोवमहियसत्तसागरोवमाणि', सत्त उच्छेहो होदि । तेसिं संदिट्ठी | ॥३॥ ३।३ । ९ ५। ५.६। ।11। सा । बम्ह-बम्डुत्तरकप्पे चत्तारि पत्थमा । एदेसिमाउवमाणिज्जमाणे मुहं भवसागरोवमहियसत्त सागरोवमाणि, भूमी भद्धसागरोवमहियदससागरो. बमाणि । एदेसिमाउआण संदिही | 1://९/३/:/लांतव-कापिट्टे दोषिण वरथला । सेसिमाउभाग संदिट्टी | १२/१४ 1:/ महसुक्को' त्ति एक्को चेव पस्थको सुक्छ-महसुलकप्पेषु । तम्मि ५ भाउस्स भ संदिट्ठी एसा | १६ । । सहस्सारओ त्ति एको पत्थलो सदर-सहस्सारकप्पेषु । आउसदिही'
। भाणद-पाणदकप्पेसु तिष्णि पत्थला । तेसुमाउस्स वुत्तकमेण आणीदसंदिही | .९ / ९:/ २० आरण अग्न्दकप्पे तिण्णि पत्थका । एदेसुमाउमाणं एस संदिट्ठी | २० । २/२११:२२
सागरोपम, भूमि साढ़े सात सागरोपम, और उत्सेध सात है। [१५ - ५ ७ : हानि-वृद्धि । ] उनकी संदृष्टि- अंजन ३१४, वनमाल ३१३, नाग ४, गरुड ५१, लांगल ६.४, बलभद्र ६१४, चक्र ७३ सागरोपम ।
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर कल्पमें चार पटल हैं। इनके आयुप्रमाणको लानेके लिये मुख सादे सात सागरोपम, भूमि साढ़े दश सागरोपम [ और उत्सेध चार ] है । [२३ - १५ १ = } हानि-वृद्धि । ] इनमें आयुप्रमाणकी संदृष्टि - अरिष्ट ८१, सुरसमिति ९, ब्रह्म ९४, ब्रह्मोत्तर १०३ सा.।
लांतव-कापिष्ठमें दो पटल हैं । उनमें आयुप्रमाणकी संदृष्टि- ब्रह्महृदय १२३, लांतव १४३ सा. । शुक्र-महाशुक्र कल्पमें महाशुक्र नामक एक ही पटल हैं। उसमें आयुकी संदृष्टि यह है- महाशुक्र १६३ सा.। शतार-सहस्रार कल्पमें सहस्रार नामक एक ही पटल है। उसमें आयुकी संदृष्टि - १८३ सा. । आनत-प्राणत कल्पमें तीन पटल हैं। उनमें आयुकी उक्त क्रमसे निकाली हुई संदृष्टि- आनत १९, प्राणत १९३, पुष्पक २० सा.। आरण-अच्युत कल्पमें तीन पटल हैं। इनमें आयुप्रमाणकी संदृष्टि यह है- शातक २०३, आरण २१३, अच्युत २२ सा. ।
व त्वला,
१द व सासागरोवमाण. २६ व माउवमाणाणिमाणे. ३९ब महसुक्के. द पत्वला आउसंदिट्ठी. TP. 107
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