Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८२४ ] तिलोयपण्णत्ती
[८. ३८१भग्गमहिसीओ अट्ट य चीत्तीससहस्सयाणि देवीओ। णिरुवमलावणाओ सोहंते बम्हकम्पिदे ॥ ३६१
८।३४०००। सोलससहस्सपणमयदेवीओ अट्ट भग्गमहिसीओ । लंतवइंदम्मि पुढं शिरुतमरूवाभो रेहति ॥ ३८२
41 १६५००। भट्टसहस्सा दुसया पण्णं चहिया हुवंति देवीओ । अग्गमहिसीओ अट्ट य रम्मा महसुकइंदम्मि ॥ ३०३
८२५०।८। भत्तारिसहस्साई एकसयं पंचवीसभन्भदियं । देवीओ अट्ठ जेट्ठा होति सहस्सारइंदम्मि ॥ ३८४
४१२५। ८। भाणदपाणदारणअच्चुदईदेसु अट्ठ जेट्ठाओ । पत्तेक्कं दुसहस्सा तेसट्ठी होति देवीओ ॥ ३८५
८। २०६३ । खणहणहट्टदुगइगिअट्टयछस्सत्तसक्कदेवीओ । लोयविणिच्छयगंथे हुवंति सेसेसु पुत्वं च ।। ३८६ ७६८१२८०००।
पाठान्तरम् । सगवीसं कोडीओ सोहम्मिदेसु हाँति देवीओ । पुव्वं पिव सेसेसु संगाहणियम्मि णिद्दिटं ॥ ३८७
पाठान्तरम् ।
ब्रम्हकल्पेन्द्रके अनुपम लावण्यवाली आठ अग्रमहि पियां और चौंतीस हजार देवियां शोभायमान हैं ॥ ३८१ ॥ अ. म. ८, देवी ३४००० ।
लांतवेन्द्र के अनुपम रूपवाली सोलह हजार पांच सौ देवियां और आठ अग्रमहिषियां शोभायमान हैं ॥ ३८२ ॥ अ. म. ८, देवी १६५०० ।
महाशुक्र इन्द्रके आठ हजार दो सौ पचास देवियां और रमणीय आठ अग्रमहिषियां होती हैं ॥ ३८३ ॥ दे. ८२५०, अ. म. ८ ।
___ सहस्रार इन्द्रके चार हजार एक सौ पच्चीस देवियां और आठ ज्येष्ठ देवियां होती हैं ॥ ३८४ ॥ दे. ४१२५, ज्ये. ८ ।।
आणत, प्राणत, आरण और अच्युत इन्द्रों से प्रत्येकके आट अग्रमहिपियां और दो हजार तिरेसठ देवियां होती हैं ॥ ३८५ ।। ज्ये. ८, दे. २०६३ ।
__ शून्य, शून्य, शून्य, आठ, दो, एक, आठ, छह और सात, इन अंकोंके प्रमाण सौधर्म इन्द्रके देवियां होती हैं । शेष इन्द्रोंमें देवियों का प्रमाण पहिलेके ही समान है, ऐसा लोकविनिश्चय ग्रन्थमें निर्दिष्ट है ॥ ३८६ ॥ ७६८१२८००० ।
पाठांतर । सौधर्म इन्द्रके सत्ताइस करोड़ और शेष इन्द्रोंके पूर्वोक्त संख्या प्रमाण देवियां होती हैं, ऐसा संगाहणिमें निर्दिष्ट है ॥ ३८७ ॥ २७०००००००।
पाठांतर ।
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