Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८.१४२
अट्ठमो महाधियारी कप्पालीदा पडला एक्करसा होति जणरज्जूए । पढमाए अंतरादो उवरुवरि होति अधियाओ॥ ॥५ कप्पा सीमाओ णियणियचरािमदयाण धयदंडा । किंचूणयलोयंतो कप्पातीदाण भवसाणं ॥ १३६
।एवं सीमापरूवणा सम्मत्ता। उडुपहुदिएक्कतीसं एदेसु पुष्वअबरदक्खिणदो । सेढीबद्धा गइरदिअणलदिसाठिदपइण्णा य ॥ ॥.. सोहम्मकप्पणामा तेसु उत्तरदिसाए सेटिगया । मरुईसाणदिसहिदपइण्णया होति ईसाणे ॥ १५८ अंजणपहुदी सत्त य एदेखि पुन्वअवरदक्षिणदो । सेढीबद्धा णइरिदिअणलंदिसहिदपइण्णा य ॥ १३९ । णामे सणक्कुमारो तेसं उत्तरदिसाए सेढिगया। पवणीसाणे सठिदेपइण्णया होति माहिंदे ॥१४. रिहादी चत्तारो एदाणं चउदिसासु सेढिगया। विदिसापइण्णयाणि ते कप्पा बम्हणामेणं ॥ १४१ बम्हहिदयादिदुदयं एदाणं चउदिसासु सेढिगया । विदिसापइण्णयाइं णामेणं लंतओ कप्पो ॥ १४२
अन्तरसे ऊपर कुछ कम एक राजुमें शेष ग्यारह कल्पातीत पटल हैं। इनमें प्रथमके अन्तरसे ऊपर ऊपर अन्तर अधिक है ॥ १३१-१३५ ॥
कल्पोंकी मीमायें अपने अपने अन्तिम इन्द्रकोंके ध्वजदण्ड हैं और कुछ कम लोकका अन्त कल्पातीतोंका अन्त है ॥ १३६ ॥
इस प्रकार सीमाकी प्ररूपणा समाप्त हुई । __ऋतु आदि इकतीस इन्द्रक एवं उनमें पूर्व, पश्चिम और दक्षिणके श्रेणीबद्ध; तथा नैऋत्य व अग्नि दिशामें स्थित प्रकीर्णक, इन्हींका नाम सौधर्म कल्प है । उपर्युक्त उन विमानोंकी उत्तर दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध और वायु एवं ईशान दिशामें स्थित प्रकीर्णक, ये ईशान कल्पमें हैं ।। १३७-१३८ ॥
___ अंजन आदि सात इन्द्रक एवं उनके पूर्व, पश्चिम और दक्षिणके श्रेणीबद्ध तथा नैऋत्य एवं अग्नि दिशामें स्थित प्रकीर्णक, इनका नाम सनत्कुमार कल्प है। इन्हींकी उत्तर दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध और पवन एवं ईशान दिशामें स्थित प्रकीर्णक, ये माहेन्द्र कल्पमें हैं ॥ १३९-१४०॥ -
अरिष्टादिक चार इन्द्रक तथा इनकी चारों दिशाओंके श्रेणीबद्ध और विदिशाओं के प्रकीर्णक, इनका नाम ब्रह्म कल्प है ॥ १४१ ॥
ब्रह्महृदयादिक दो इन्द्रक और इनकी चारों दिशाओंमें स्थित श्रेणीबद्ध तथा विदिशाओंके प्रकीर्णक, इनका नाम लान्तव कल्प है ॥ १४२ ॥
१६ व अणिल°. २६ व पवणीसाणं सहिद'. ३द व पाण्णयाणं.
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