Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७९०] तिलोयपण्णत्ती
[८.११३महसुक्कइंदभो तह एदस्स य चउदिसासु सेढिगदा । विदिसापडण्णयाई कप्पो महसुक्कणामेणं ॥ १४३ इंदयसहस्सयारा एदस्स चउहिसासु सेढिगदा । विदिसापइण्णयाई होति' सहस्सारणामेणं ॥ १४४ . भाणदपहुदी छक्कं एदस्स य पुन्वभवरदक्खिणदो । सेढीबद्धा णइरिदिमणले दिसहिदपइण्णाणि १४५ माणदभारणणामा दो कप्पा होति पाणदच्चुदया । उत्तरदिससेढिगया समीरणीसाणदिसपइण्णा य ॥ हेहिमहेहिमपमुहा एक्कक्क सुदंसणाओ पडलाणिं । होति हु एवं कमसो कप्पातीदा ठिदा सम्चे ॥ जे सोलसकप्पाइं केई इच्छंति ताण उवएसे । बम्हादिचउदुगेसुं सोहम्मदुर्ग व दिब्भेदो ॥ १४८
पाठान्तरम् । बत्तीसठ्ठावीसं बारस अटुं कमेण लक्खाणि । सोहम्मादि वउक्के होति विमाणाणि विविहाणि ॥ १४९
३२०००००। २८०००००। १२०००००। ८०००००।
महाशुक्र इन्द्रक तथा इसकी चारों दिशाओंमें स्थित श्रेणीबद्ध और विदिशाके प्रकीर्णक, इनका नाम महाशुक्र कल्प है ।। १४३ ॥
सहस्रार इन्द्रक और इसकी चारों दिशाओंमें स्थित श्रेणीबद्ध व विदिशाओंके प्रकीर्णक, इनका नाम सहस्रार कल्प है ॥ १४४ ॥
आनत आदि छह इन्द्रक और इनकी पूर्व, पश्चिम व दक्षिण दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध तथा नैऋत्य एवं अग्नि दिशामें स्थित प्रकीर्णक इनका नाम आनत और आरण दो कल्परूप है। उक्त इन्द्रकोंकी उत्तर दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध तथा वायु व ईशान दिशाके प्रकीर्णक, इनका नाम प्राणत और अच्युत कल्प है ॥ १४५-१४६ ॥
___ अधस्तन-अधस्तन आदि एक एकमें सुदर्शनादिक पटल हैं। इस प्रकार क्रमसे सब कल्पातीत स्थित हैं ॥ १४७ ॥
जो कोई आचार्य सोलह कल्पोंको मानते हैं उनके उपदेशानुसार ब्रह्मादिक चार युगलोंमें सौधर्म युगलके समान दिशाभेद है॥ १४८ ॥
पाठान्तर । सौधर्मादि चार कल्पोंमें तीनों प्रकारके विमान क्रमसे बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख और आठ लाख हैं ॥ १४९ ।।
सौ. कल्प. ३२ लाख, ई. क. २८ ला., सा. क. १२ ला., मा. क. ८ ला.।
१९ व होदि. २६ व अणिल'. ३६ व गं चदि भेदो.
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