Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[८. २६१
पुढधीसाणं चरियं अद्धमहादिमंडलीयाणं । विदियाए कक्खाए गच्चंते णचणा देवा ॥ २६१ . बलदेवाण हरीणं पडिसत्तूणं विचित्त चरिदाणिं । तदियाए कक्खाए वररसभावेहिं णचंति ॥ २६२ चोइसरयणवईणं णवणिहिसामीण चक्कवट्टीण : अच्छरियचरित्ताणिं गच्चंति चउत्थकक्खाए ॥ २६३ सव्वाण सुरिंदाणं सलोयपालाण चारुचरियाई । ते पंचमकक्खाए गरचंति धिचित्तभंगीहि ॥ २६४ गणहरदेवादीणं विमलमुणिंदाण विविहरिद्धीणं, चरियाई विचित्ताई पच्चंते छट्टकक्खाए ॥ २६५ चात्तीसाइसयाणं बहुविहकल्लाणपादिहेराणं । जिणणाहाण चरित्तं सत्तमकक्खाए गच्चंति ॥ २६६ दिश्ववरदेहजुत्तं वरस्यणविभूसणेहिं कयसोहा । ते णच्चंते णिच्चं णियणियइंदाण अग्गेसु ॥ २६७ एदा सत्त अणीया देविंदाणं हुवंति पत्तेकं । अण्णा वि छत्तचामरपीढाणि य बहुविहा हति ॥ २६८
द्वितीय कक्षाके नर्तक देव अर्द्धमण्डलीक और महामण्डलीकादि पृथिवीपालकों के चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २६१ ॥
तृतीय कक्षाके नर्तक देव उत्तम रस एवं भावोंके साथ बलदेव, नारायण और प्रतिनारायणोंके विचित्र चरित्रोंका अभिनय करते हैं ॥ २६२ ॥
___ चतुर्थ कक्षाके नर्तक देव चौदह रत्नोंके अधिपति और नव निधियोंके स्वामी ऐसे चक्रवर्तियों के आश्चर्यजनक चरित्रोंका अभिनय करते हैं ।। २६३ ॥
पंचम कक्षाके वे नर्तक देव लोकपालों सहित समस्त इन्द्रोंके सुन्दर चरित्रोंका विचित्र प्रकारोंसे अभिनय करते हैं ॥ २६४ ॥
छठी कक्षाके नर्तक देव विविध ऋद्धियोंके धारक गणधर देवादि निर्मल मुनीन्द्रोंके विचित्र चरित्रोंका अभिनय करते हैं ॥ २६५ ॥
सप्तम कक्षाके नर्तक देव चौंतीस अतिशयोंसे संयुक्त और बहुत प्रकारके मंगलमय प्रातिहार्योंसे युक्त जिननाथोंके चरित्रका अभिनय करते हैं ॥ २६६ ॥
दिव्य एवं उत्तम देहसे सहित और उत्तम रत्नविभूषणोंसे शोभायमान वे नर्तक देव नित्य ही अपने अपने इन्द्रोंके आगे नाचते हैं ॥ २६७ ॥
ये सात सेनायें प्रत्येक देवेन्द्र के होती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य बहुत प्रकार छत्र, चेंबर और पीठ भी होते हैं ॥ २६८ ॥
१ब चरियाण. २दब उच्चरिय. ३द ब सतपदा जाणीए. ४दबदेविंदाण होति.
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