Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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८१८ ] तिलोयपण्णत्ती
[८.३३६सोहम्मीसाणेसुं देवा सव्वे वि कायपडि चारा । होति हु सणक्कुमारप्पहुदी दुप्पासपडि चारा । ३३६ बम्हाभिधाणकप्पे लंतवकप्पम्मि रूवपडिचारा । कप्पम्मि महासुके सहस्पयारम्मि सद्दपडि चारा ।। आणदपाणदारणअच्चुदकप्पेसु चित्तपडि चारा । एत्तो सविदाणं आवासविधि परूवे मो ।। ३३० पढमादु एकतीसे पभणामजुदस्स दक्षिणोलीए । बत्तीस लेढिबद्धे अट्ठारसमम्मि चेटदे सक्को ॥ ३३२ तस्सिदयस्स उत्तरदिसाए बत्तीससे ढिबद्धेसुं । अट्ठारसमे चेदि इंदो ईसाणणामो य ॥ ३४० पढमादु अतृतीसे दक्षिणपंतीए चक्कणामस्स । पणुवीससे ढिबद्धे सोलसमे तह सगकुमारिंदो ॥ ३४१ तस्सिदयस्स उत्तरदिसाए पणुवीससे ढिबद्धम्मि । सोलसमसेढि बढे चे?दि महिंदगामिंदो ॥ ३४२ बम्हुत्तरस्स दक्खिणदिसाए इगिवीससेढिबद्वे सुं । चोइसमसेढिबढे चेटेदि हु बम्हकप्पिदो ॥ ३४३ लंतवइंदयदक्विणदिसाए वीसाए सढिबढेसुं। बारसमसेढिबद्धे चेटेदि हु लंतविंदो वि ॥ ३४४
सौधर्म ईशान कल्पोंमें सब ही देव कायप्रवीचारसे सहित और सानत्कुमार आदि स्पर्शप्रवीचारसे युक्त होते हैं ॥ ३३६ ॥
ब्रम्ह नामक कल्पमें व लांतव कल्पमें रूपप्रवीचारसे युक्त तथा महाशुक्र व सहस्रार कल्पमें शब्दप्रवीचारसे युक्त होते हैं ॥ ३३७ ॥
आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इन कल्पोंमें देव चित्तप्रवीचार (मनःप्रवीचार ) से सहित होते हैं । यहांसे आगे सब इन्द्रोंकी आवासविधिको कहते हैं ॥ ३३८ ॥
प्रथम इकतीस इन्द्रकोंमें प्रभ नाम युक्त इन्द्रककी दक्षिण श्रेणीमें बत्तीस श्रेणीबद्धोंमेंसे अठारहवेमें सौधर्म इन्द्र स्थित है ॥ ३३३ ।।
___ इसी इन्द्रककी उत्तर दिशाके बत्तीस श्रेणीबद्धों से अटारहवेंमें ईशान नामक इन्द्र स्थित है ॥ ३४० ॥
___पहिलेसे अड़तीसवें चक्र नामक इन्द्रककी दक्षिण पंक्तिों पच्चीस श्रेणीबद्धों से सोलहवेमें सानत्कुमार इन्द्र स्थित है ॥ ३४१ ॥
इस इन्द्रककी उत्तर दिशामें पच्चीस श्रेणीबद्धों से सोलहवें श्रेणीबद्धमें माहेन्द्र नामक इन्द्र स्थित है ॥ ३४२ ॥
ब्रम्होत्तरकी दक्षिण दिशामें इक्कीस श्रेणीबद्धोंमेंसे चौदहवें श्रेणीबद्धमें ब्रम्ह कल्पका इन्द्र स्थित है ॥ ३४३ ॥
लांतव इन्द्रककी दक्षिण दिशामें बीस श्रेणीबद्धों से बारहवें श्रेणीबद्ध में लांतव इन्द्र स्थित है ॥ ३४४ ॥
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