Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-२६०.८] अट्ठमो महाधियारो
[ ८०७ वरपउमरायबंधूयकुसुमसंकासदेहसोहिल्ला । ते गियणियकक्खासु वसहाई छटुकक्खजुदा ॥ २५२ भिपिणदणीलवण्णा सत्तमकवहिदा वसहपहुदी । ते णियणियकक्खासुं वरमंडणमंडिदायारा ॥ २५३ सत्ताण अणीयागं' णियणियकक्खाण होति विच्चाले । होति वरपडहसंखं मद्दलकाहलपहुदीण पत्तेकं ॥ लंबंतरयणकिंकिणिमुहदामणिकुसुमदामरमणिजा । धुव्वतधयवदाया वरचामर छत्तकतिलला ॥ २५५ ।। रयणमयप्पल्लाणा वसहतुरंगा रहा य इंदाणं । बहुविहविगुब्वणाणं वाहिजंताण सुरकुमारहि ॥ २५६ असिमुसलकणयतोमरकोदंडप्पहुदिविविहसस्थकरा । ते सत्तसु कक्वानुं पदाहिणो दिव्वरूवघरा ॥ २५७ सज्ज रिसह गंधारमझिमा पंचपंचमहुरसरं । धइबदजुदं णिसादं पुह पुह गायति गंधवा ॥ २५८ वीणावेणुप्पमुहं णाणाविहतालकरणलयजुत्तं । वाइज्जदि वाइत्ते गंधव्वहिं महुरसरं ॥ २५९ कंदपराजराजाधिराजविज्जाहराण चरियाणि । णचंति णयसुरा णिच्चं पढमाए कक्खाए ॥ २६०
अपनी अपनी कक्षाओंमेंसे छठी कक्षा स्थित वृषभादिक उत्तम पद्मराग मणि अथवा बंधूक पुष्पके सदृश शरीरसे शोभायमान होते हैं ॥ २५२ ॥
अपनी अपनी कक्षाओंमेंसे सप्तम कक्षामें स्थित वृपभादिक भिन्न इन्द्रनीलमणिके सदृश वर्णवाले और उत्तम आभूषणोंसे मण्डित आकारसे युक्त होते हैं ॥ २५३ ॥
सातो अनीकोंकी अपनी अपनी कक्षाओं के अन्तरालमें उत्तम पटह, शंख, मर्दल और काहल आदिमेंसे प्रत्येक होते हैं ॥ २५४ ॥
__बहुविध विक्रिया करनेवाले तथा सुरकुमारों द्वारा उह्यमान इन्द्रोंके वृषभ, तुरंग और रथादिक लटकती हुई रत्नमय क्षुद्रघंटिकाओं, मणि एवं पुष्पोंकी मालाओंसे रमणीय; फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे युक्त, उत्तम चैंबर व छत्रसे कान्तिमान् और रत्नमय तथा सुखप्रद साजसे संयुक्त होते हैं ॥ २५५-२५६ ॥
जो असि, मूसल, कनक, तोमर और धनुष आदि विविध प्रकारके शस्त्रोंको हाथमें धारण करनेवाले हैं वे सात कक्षाओंमें दिव्य रूपके धारक पदाति होते हैं ॥ २५७ ॥
गन्धर्व देव पड्ज, ऋषम, गांधार, मध्यभ, पंचम, धैवत और निपाद, इन मधुर स्वरोको पृथक् पृथक् गाते हैं ॥ २५८ ॥ .
गन्धर्व देव नाना प्रकार की तालक्रिया व लयसे संयुक्त और मधुर स्वरसे बीणा एवं बांसुरी आदि वादित्रोंको बजाते हैं ॥ २५९ ॥
प्रथम कक्षाके नर्तक देव नित्य ही कन्दर्प, राजा, राजाधिराज और विद्याधरों के चरित्रोंका अभिनय करते हैं ॥ २६० ॥
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१ ससाण य आणीया. २६ ब जं सहिसहं.
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