Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. १७९] अट्ठमो महाधियारो
[७९५ उणवण्णसहस्सा यडसयाणि बादाल ताणि लंतवए । उणदालसहस्सा गवसयाणि सगवीस महसुक्के ।
४९८४२ । ३९९२७ । उणसट्ठिसया इगितीसउत्तरा होति ते सहस्सारे । सत्तरिजुदतिसयाणि कप्पचउक्के पहण्णया सेसे ॥
५९३३ । ३७० । अध हेटिमगेवज्जे ण होति तेसिं पदण्णयविमाणा' । बत्तीसं मझिल्ले उवरिमए हॉति बावण्णा ॥१७॥
। ३२ । ५२। तत्तो अणुहिसाए चत्तारि पइण्णया वरविमागा । तेसट्ठिअहिपाए पइण्णया णत्थि अस्थि सेढिगया। जे सोलसकप्पाई केई इच्छति ताण उवएसे । तस्सि तस्सि वोच्छं परिमाणाणि विमाणाणं ॥ १७४ बत्तीस अट्टवीसं बारस अटै कमेण लक्खाणि । सोहम्मादिचउक्के होति विमाणाणि विविहाणिं॥१७९
३२००००० । २८०००००। १२०००००। ८०००००।
लांतव कल्पमें उनचास हजार आठ सौ व्यालीस और महाशुक्रमें उनतालीस हजार नौ सौ सत्ताईस प्रकीर्णक विमान हैं ॥ १७४ ॥ लां. ४९८४२, महा. ३९९२७ । - वे प्रकीर्णक विमान सहस्रार कल्पमें उनसठ सौ इकतीस और शेष चार कल्पोंमें तीन सौ सत्तर हैं ॥ १७५ ॥ ५९३१, शेष चार ३७०।
अधस्तन प्रैवेयमें उनके प्रकीर्णक विमान नहीं हैं। मध्यम अवेयमें बत्तीस और उपरिम प्रैवेयमें बावन प्रकीर्णक विमान हैं ॥ १७६ ॥ अ. ग. ०, म. ग. ३२, उ. |. ५२ ।
इसके आगे अनुदिशोंमें चार प्रकीर्णक विमान हैं । तिरेसठवें पटलमें प्रकीर्णक नहीं हैं, श्रेणीबद्ध विमान हैं ॥ १७७ ॥
जो कोई सोलह कल्पोंको मानते हैं उनके उपदेशानुसार उन उन कल्पोंमें विमानोंके प्रमाणको कहते हैं ॥ १७८ ॥
सौधर्मादि चार कल्पोंमें क्रमसे बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख और आठ लाख प्रमाण विविध प्रकारके विमान हैं ॥ १७९ ॥
सौ. ३२०००००, ई. २८०००००, स. १२०००००, मा. ८०००००।
१दब पइण्णया विमाणा. २दब परिमाणि विमाणाणिं. ३ब बत्तीसवीसं.
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