Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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अट्ठमो महाधियारो
[७८५ . तत्तो भाणदपहुदी जाव अमोघो त्ति सेटिबद्धाणं । आदिल्लदोण्णिदीवे दोण्णिसमुहम्मि सेसाभो॥१०॥
तह सुप्पबुद्धपहुदी जाव य सुविसालो त्ति सेढिगदा । आदिल्लतिण्णिदीवे एकसमुद्दम्मि सेसाओ ॥ सुमणस सोमणसाए आइल्लयएक्कदीव उवहिम्मि । पीदिकराए एवं आइच्चे चरिमउवहिम्मि ॥१०॥ होदि भसंखेज्जाणि' एदाणं जोयणाणि विच्चालं । तिरिएणं सव्वाणं तेत्तियमेत्तं च वित्थारं ॥१०७ एवं चउम्विहेसु सेढीबद्धाण होदि उत्तकमे । अवसेसदीव उवहीसु णास्थि सेढीण विण्णासो॥ १०४ सेढीबद्धे सम्वे समवट्टा विविहदिब्वरयणमया । उल्लसिदधयवदाया णिरुवमरूवा विराजंति ॥ १०९ एदाणं विश्चाले पइण्णकुसुमोवयारसंठाणा । होति पइण्णयणामा रयणमया विदिसे वरविमाणा॥११. संखेज्जासंखेज्जं सरूवजोयणपमाणविक्खंभो । सम्वे पइण्णयाणं विच्चालं तेत्तियं तेसुं ॥ १११
इसके आगे आनत पटलसे लेकर अमोघ पटल पर्यन्त शेष श्रेणीबद्धोंका विन्यास आदिके दो द्वीपों और दो समुद्रोंके ऊपर है ॥ १०४ ॥
तथा सुप्रबुद्ध पटलसे लेकर सुविशाल पटल तक शेष श्रेणीबद्ध आदिके तीन द्वीपों और एक समुद्रके ऊपर स्थित हैं ॥ १०५॥
सुमनस और सौमनस पटलके श्रेणीबद्ध विमान आदिके एक द्वीप तथा एक समुद्रके ऊपर स्थित हैं। इसी प्रकार प्रीतिंकर पटलके भी श्रेणीबद्धोंका विन्यास समझना चाहिये। आदित्य पटलके श्रेणीबद्ध अन्तिम समुद्र के ऊपर स्थित हैं ॥ १०६ ॥
___ इन सब विमानोंका अन्तराल तिरछे रूपसे असंख्यात योजनप्रमाण है। इतना ही इनका विस्तार भी है ॥ १०७ ।।
इस प्रकार उक्त क्रमसे श्रेणीबद्धोंका विन्यास चतुर्विध रूपमें (?) है। अवशेष द्वीपसमुद्रोंमें श्रेणीबद्धोंका विन्यास नहीं है ।। १०८ ॥
सब श्रेणीबद्ध समान गोल, विविध प्रकारके दिव्य रत्नोंसे निर्मित, ध्वजा-पताकाओंसे सुशोभित और अनुपम रूपसे युक्त होते हुए विराजमान हैं ॥ १०९ ॥
इनके अन्तरालमें विदिशामें प्रकीर्णक पुष्पोंके सदृश स्थित, रत्नमय, प्रकीर्णक नामक उत्तम विमान हैं ॥ ११०॥
सब प्रकीर्णकोंका विस्तार संख्यात व असंख्यात योजनप्रमाण और इतना ही उनमें अन्तराल भी है ॥ १११ ॥
१द दीवं, ब देवं. २ द ब असंखेज्जाणं. ३ ब चउम्विदेसु. ४६ ब सठाणं. TP. 99
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