Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ८. ११२इंदयसेढीबद्धप्पडण्णयाण पि वरविमाणाणं । उवरिमतलेसु रम्मा एकेका होदि तडवेदी ॥ ११२ चरियष्टालियचारू वरगोउरदारतोरणाभरणा । धुन्वंतधयवदाया अच्छरियविसेसकररूवा ॥ ११३
।विण्णासो सम्मत्तो। कप्पाकप्पातीदं इदि दुविहं होदि' णाकवरलोए । बावण्णकप्पपडला कप्पातीदा य एक्करसं ॥ ११४
पारस कप्पा केई केई सोलस वदंति आइरिया । तिविहाणि भासिदाणि कप्पातीदाणि पडलागि ॥ ११५ हेटिम मज्झे उवरि पत्तेक्कं ताण होति चत्तारि । एवं बारसकप्पा सोलस उड्डम? जुगलाणिं ॥ ११६ गेवज्जमणुद्दिसयं अणुत्तरं इय हुवंति तिविहप्पा । कप्पातीदा पडला गेवज्जं णवविहं तेसुं ॥ ११७ मेरुतलादो उवरिं दिवड्डरज्जूए आदिम जुगलं । तत्तो हुवेदि विदियं तेत्तिर्यमेत्ताए रज्जूए ॥ ११८
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इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक, इन उत्तम विमानोंके उपरिम व तल भागोंमें रमणीय एक एक तटवेदी है ॥ ११२ ॥
यह वेदी मार्ग व अट्टालिकाओंसे सुन्दर, उत्तम गोपुरद्वार व तोरणोंसे सुशोभित, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे युक्त, और आश्चर्यविशेषको करनेवाले रूपसे संयुक्त है ॥ ११३ ॥
विन्यास समाप्त हुआ। ___ स्वर्गलोकमें कल्प और कल्पातीतके भेदसे पटल दो प्रकारके हैं । इनमेंसे बावन कल्प पटल और ग्यारह कल्पातीत पटल हैं ॥ ११४ ॥ कल्प. ५२ + कल्पा. ११ = ६३ । ।
. कोई आचार्य बारह कल्प और कोई सोलह कल्प बतलाते हैं । कल्पातीत पटल तीन प्रकार कहे गये हैं ॥ ११५ ॥
___ जो बारह कल्प स्वीकार करते हैं उनके मतानुसार अधोभाग, मध्य भाग और उपरिम भागमेंसे प्रत्येकमें चार चार कल्प हैं। इस प्रकार सब बारह कल्प होते हैं । सोलह कल्पोंकी मान्यतानुसार ऊपर ऊपर आठ युगलोंमें सोलह कल्प हैं ॥ ११६ ॥
__ ग्रैवेय, अनुदिश और अनुत्तर, इस प्रकार कल्पातीत पटल तीन प्रकार हैं । इनमेंसे प्रैवेय पटल नौ प्रकार हैं ॥ ११७॥
मेरुतलसे ऊपर डेढ़ राजुमें प्रथम युगल और इसके आगे इतने ही राजु अर्थात् डेढ़ राजुमें द्वितीय युगल है ॥ ११८ ॥
१६ ब विमाणाणिं. २ द ब होति. ३ द ब कप्पातीदा इय. ४द ब हुवेदि यं ते तेत्तिय'.
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