Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७८२] तिलोयपण्णत्ती
[ ८.८१एक्कं जोयणलक्खं वासो सम्वविसिद्धिणामस्स । एवं तेसट्ठीणं वासो सिट्टो सिसूण बोहह ॥ ८१
१०००००। सम्वाण इंदयाणं चउसु दिसासु पि सेढिबद्धाणिं । चत्तारि वि विदिसासु होंति पइण्णयविमाणामो ॥ ८२ उडणामे पत्तेक्कं सेढिगदा चउदिसासु बासट्ठी । एकेक्कूणा सेसे पडिदिसमाइच्चपरियंत' ॥ ८३ उडुणामे सेढिगया एकेकदिसाए होंति तेसट्ठी । एकेक्कूणा सेसे जाव य सम्वट्ठसिद्धि त्ति ॥ ८४
[पाठान्तरम् । ] बासट्ठी सेढिगया पभासिदा जेहि ताण उवएसे । सबढे वि चउद्दिसमेकेक सेढिबद्धा य ॥ ८५ पढमिदयपहुदीदो पीदिकरणामइंदयं जाव । तेसु चउसु दिसासु सेढिगदाणं इमे णामा ॥ ८६ ।। उडुपहउडुमज्झिमउडुआवत्तयउडुविसिट्ठणामेहिं । उडुइंदयस्स एदे पुवादिपदाहिणा होति ॥ ८७
सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रकका विस्तार एक लाख योजनप्रमाण है । इस प्रकार तिरेसठ इन्द्रकोंका विस्तार शिष्यों के बोधनार्थ कहा गया है ॥ ८१ ॥ १०००००।
सब इन्द्रकोंकी चारों दिशाओंमें श्रेणीबद्ध और चारों ही विदिशाओंमें प्रकीर्णक विमान होते हैं ॥ ८२ ॥
__ ऋतु नामक विमानकी चारों दिशाओंमें से प्रत्येक दिशामें बासठ श्रेणीबद्ध हैं। इसके आगे आदित्य इन्द्रक पर्यन्त शेष इन्द्रकोंकी प्रत्येक दिशामें एक एक कम होते गये हैं ॥ ८३ ॥
ऋतु नामक इन्द्रक विमानके आश्रित एक एक दिशामें तिरेसठ श्रेणीबद्ध विमान हैं । इसके आगे सर्वार्थसिद्धि पर्यंत शेष विमानोंमें एक एक कम होते गये हैं ॥ ८४ ॥
[पाठांतर । ] जिन आचार्योने ( ऋतु विमानके आश्रित प्रत्येक दिशामें ) बासठ श्रेणीबद्ध विमानोंका निरूपण किया है उनके उपदेशानुसार सर्वार्थसिद्धिके आश्रित भी चारों दिशाओंमें एक एक श्रेणीबद्ध विमान है ॥ ८५॥
प्रथम इन्द्रकसे लेकर प्रीतिकर नामक इन्द्रक पर्यन्त चारों दिशाओंमें उनके आश्रित रहनेवाले श्रेणीबद्ध विमानोंके नाम ये हैं ॥ ८६ ॥.
ऋतुप्रभ, ऋतुमध्यम, ऋतुआवर्त और ऋतुविशिष्ट, ये चार श्रेणीबद्ध विमान ऋतु इन्द्रकके समीप पूर्वादिक दिशाओंमें प्रदक्षिणक्रमसे हैं ॥ ८७ ॥
१दव 'माइग्चस्स परियंतं. २द व पदाहिणे होदि.
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