Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. ५७ ]
अमो महाधियारो
७७७
इगिवीस लक्खाणि अट्ठावण्णा सहस्स जोयणया । चउसट्ठीसंजुत्ता सोलस भंसा य णागविरथासे || ५२
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जोया छष्णवदी सगसीदिसहस्सवीस लक्खाणिं । चउवीसकला एवं गरुडिंदय रुंद परिमाणं || ५३
२१५८०६४
२४ 39
सोलससहस्सइगिसय उणतीसं वीसलक्खजोयणया । एक्ककला विक्खंभो लंगलणामस्स विष्णेयो ॥ ५४
२०८७०९६
२०१६१२९
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क्वीलक्खा पणदालसहस्स इगिसयाणि च । एगसट्ठिजोयणा णत्र कलाओ बलभद्दवित्थारो ॥ ५५
१९४५१६१
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चहरिं सहस्सा इगिसयतेंणउदि अट्टरसलक्खा । जोयणया सत्तरसं कलाओ चक्कस्स वित्थारो ॥ ५६
१८७४१९३
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भट्ठार लक्खाणि तिसहस्सा पंचवीसजुददुसया | जोयणया पणुवीसा कलाभो रिट्ठस्स विक्खंभो || ५७
१८०३२२५|२५|
१७
नाग इन्द्रकका विस्तार इक्कीस लाख अट्ठावन हजार चौंसठ योजन और सोलह भाग अधिक है ॥ ५२ ॥ २१५८०६४३६ ।
गरुड इन्द्र विस्तारका प्रमाण बीस लाख सतासी हजार छयानत्रै योजन और चौबीस कला अधिक है ॥ ५३ ॥ २०८७०९६३४ ।
लांगल नामक इन्द्रकका विस्तार बीस लाख सोलह हजार एक सौ उनतीस योजन और एक कला अधिक जानना चाहिये || ५४ || २०१६१२९३ ।
बलभद्र इन्द्रकका विस्तार उन्नीस लाख पैंतालीस हजार एक सौ इकसठ योजन और नौ कला अधिक है ॥ ५५ ॥। १९४५१६१ र ।
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चक्र इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख चौहत्तर हजार एक सौ तेरानत्रै योजन और सत्तरह कला अधिक है ॥ ५६ ॥ १८७४१९३३ ।
अरिष्ट इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख तीन हजार दो सौ पच्चीस योजन और पच्चीस कला अधिक है ॥ ५७ ॥ १८०३२२५३ ।
TP. 98
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