Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णती
[८.४६
छम्चीसं च य लक्खाचवण्णसहस्सथडसपाणिं पिजडतीसजोयणाणि बाबीसकला पहंकरे सं॥ ४६
२२६५४८३८ ३९ पणुवीसं लक्खाणि तेसोदिसहस्सअडरायाणि पि । सत्तरि य जोयणाणि य तीसकला पिटके वासी ॥ ४७
२५४३८७० |३| बारससहस्सणवसयतिउत्तरा पंचवीसलक्खाणि । जोयणए सत्तंसा गजाभिधाणस्स विखंभो ॥ ४८
___२५१२९०३| चवीस लाखाणि इगिदालसहस्सणवसयाणिं पि । पणतीसजायणाणि पण्णरसकलाओ मित्त विस्थारो ॥
२४४१९३५ ।। तेवीसं लक्खाणि णयसयजुत्ताणि सत्तरिसहस्सा । सत्तद्विजोयणाणि तेवीसकलाओ पहवविस्थारो ॥ ५०
२३७०९६७ ॥२३ नेवीसलक्ख रुंदो मंजगए जोयणाणि वणमाले । दुगतियणहणवदुगद्गदुगंककमसो कला भट्ट' ॥ ५१
२३०००००। २२
प्रभंकर इन्द्रकका विस्तार छब्बीस लाख चौवन हजार आठ सौ अडतीस योजन और बाईस कलामात्र है ॥ ४६ ॥ २६५४८३८३३ ।
पिष्टक इन्द्रकका विस्तार पच्चीस लाख तेरासी हजार आठ सौ सत्तर योजन और तीस कला प्रमाण है ॥ ४७ ॥२५८३८७०३९ ।
गज नामक इन्द्रकका विस्तार पच्चीस लाख बारह हजार नौ सौ तीन योजन और सात भाग अधिक है ॥ ४८ ॥ २५१२९०३३ ।
मित्र इन्द्रकका विस्तार चौबीस लाख इकतालीस हजार नौ सौ पैंतीस योजन और पन्द्रह कला अधिक है ॥ १९ ॥ २४४१९३५३५ ।
प्रभ इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख सत्तर हजार नौ सौ सड़सठ योजन और तेईस कला अधिक है ॥ ५० ॥ २३७०९६७३३ ।
अंजन इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख योजन और वनमालका विस्तार दो, 'तीनं, शून्य, नौ, दो, दो और दो, इन अंकोंके क्रमसे बाईस लाख उनतीस हजार बत्तीस योजन तथा आठ कला अधिक है ॥ ५१ ॥ २३००००० । २२२९०३२४ ।
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१द ब जोयणाणि वीस. २व पमिच. ३द दुगद्गगंकमरक्कमसो कला भट्ठ.
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