Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७५८) - तिलोयपण्णत्ती
[७.५८९लवणप्पहुदिच उक्के णियणियखेत्तेसु दिणयरमयंका । वञ्चंति ताण लेस्सा भण्णक्खेत्तं ण कया वि ॥५८९ अट्ठासहित्तिसया लवणम्मि हुवंति भाणुवीहीओ । चउरुत्तरएक्कारससयमेत्ता धादईसंडे ॥ ५९०
३६८ । १९०४ । चउसट्ठी भट्टसया तिषिण सहस्साणि काल सलिलम्मि । चउवीसुत्तरछसया छच्च सहस्साणि पोक्खरद्धम्मि॥
३८६४ । ६६२४। नियणियपरिहिपमाणे सढिमुहुत्तेहि अवहिदे लद्धं । पत्तेक्कं भाणूगं मुहुत्तगमणस्स परिमाणं ॥ ५९२ सेसाभो वण्णणाओ जंबूदीवम्मि जाओ दुमणीगं । ताओ लवणे धादइसंडे कालोदपुक्खर सुं ॥ ५९३
।सूरप्परूवणा। बावण्णा तिणिसया होति गहाणं च लवण जलहिम्मि । छप्पण्या अब्भहियं सहस्समेक्कं च धावईसंडे ॥
३५२ । १०५६ । तिणि सहस्सा छसय छण्णउदी होति काल उवहिम्मि । छत्तीसम्भहियाणि तेपहिल्याणि पुक्खरद्धम्मि ॥
.३६९६ । ६३३६ । । एवं गहाण परूवणा सम्मत्ता।
लवण समुद्र आदि चारमें जो सूर्य व चन्द्र हैं उनकी किरणें अपने अपने क्षेत्रोंमें ही जाती हैं, अन्य क्षेत्रमें कदापि नहीं जाती ॥ ५८९ ॥
तीन सौ अड़सठ सूर्यवीथियां लवण समुद्रमें और ग्यारह सौ चार मात्र धातकीखण्ड द्वीपमें हैं ॥ ५९० ॥ ३६८ । ११०४ ।
तीन हजार आठ सौ चौंसठ सूर्यवीथियां कालोद समुद्रमें और छह हजार छह सौ चोबीस पुष्करार्द्ध द्वीपमें हैं ॥ ५९१ ॥ ३८६४ । ६६२४ ।
अपने अपने परिधिप्रमाणमें साठ मुहूर्तांका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक सूर्योकी मुहूर्तगतिका प्रमाण होता है ॥ ५९२ ॥
___ जम्बूद्वीपमें स्थित सूर्योका जो शेष वर्णन है वही लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोद और पुष्करार्द्धमें भी समझना चाहिये ॥ ५९३ ॥
इस प्रकार सूर्यप्ररूपणा समाप्त हुई। तीन सौ बावन ग्रह . लवण समुद्रमें और एक हजार छप्पन धातकीखण्ड द्वीपमें हैं ॥ ५९४ ॥ ३५२ । १०५६ । .
तीन हजार छह सौ छ्यानबै ग्रह कालोद समुद्रमें और तिरेसठ सौ छब्बीस पुष्कराई दीपमें हैं ॥ ५९५ ॥ ३६९६ । ६३२६ ।
इस प्रकार ग्रहोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
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