Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ७.५७५
लवणादिचक्काणं वासपमाणम्मि गियरविदलाणं । विषाणि फेलित्ता तत्तो नियपूसणद्वेणं ॥ ५७५ भजिदूर्ण जं लद्धं तं पक्कं रवींग विद्यालं । तस्स य अद्धपमाणं जगदीयासण्णमग्गाणं ॥ ५७६ णवणउदिसहस्त्राणि णवसयणवणउदिजोयणाणिं पि । तेरसमेत कलाओ भजिदव्वा एक्सट्ठीए ॥ ५७७
५६
९९९९९
६१
एत्तियमेवमाणं पत्तेक्कं दिणयराण विद्यालं । लवणोदे तस्सद्धं जगदीणं णिययपदममग्गाणं ॥ ५७८ छावद्विसदस्ाणि उस्लपप जोयणाणि कला । इगिसट्ठीजुतसयं तेसीदीदसयं हारो ॥ ५७९
६६६६५
१६१ १८३
एवं अंतरमाणं एक्केकरवीण धादईसंडे । लेस्सागदी तदृद्धं तस्सरिसा उदवियावाधा ॥ ५८० अडतीससहस्सा चडणउदी जोयणाणि पंच सया । अट्ठाहत्तरि दारो बारसयस्याणि इगिसीदी ॥ ५८१
१८०९४ | १२८१ |
एवं अंतरमाणं एक्केकरवीण कालसलिलम्मि | लेस्सागदी तद्द्धं तस्सरिसं उवहिाबाहा ॥ ५८२
लवणादिक चारोंके विस्तारप्रमाणमेंसे अपने आधे सूर्येके बिम्बोंको घटाकर शेषमें अर्ध सूर्यसंख्याका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना प्रत्येक सूर्येका और इससे आधा जगती आसन ( प्रथम ) मार्गके बीचका अन्तरालप्रमाण होता है ।। ५७५-५७६ ॥ ल. स. वि. यो. २००००० = १२२००००० इनका बिम्बविस्तार ६६
१२२००००० ६ १
६ १ ल. स. सूर्य ४; ४ + २ = ; २; ६६ = १२१९९९ ० ४; सूर्यसंख्या ४ + २ + {' = ९९९९९{{सूर्य-अन्तर (सू.अ. ९९९९९६ जगती और प्रथम मार्गका अन्तर ।
१२१९९९०४ १२
६ १
४९९९९
निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे योजन और इकसठसे भाजित तेरह मात्र कला इतना लवण समुद्र में प्रत्येक सूर्योके अन्तरालका प्रमाण है । इससे आधा जगती और निज प्रथम मार्गके बीच अन्तर है | || ५७७-५७८ ।।
= २
+ २ =
=
32 333 33
छयासठ हजार छह सौ पैंसठ योजन और एक सौ तेरासीसे भाजित एक सौ इकसठ कला इतना घातकीखण्डमें प्रत्येक सूर्यका अन्तराल प्रमाण है । इससे आधी किरणोंकी गति और उसके सदृश ही समुद्रका अन्तराल भी है ।। ५७९-५८० ।। ६६६६५१७३ ।
अड़तीस हजार चौरानौ योजन और बारह सौ इक्यासीसे भाजित पांच सौ अठत्तर भाग, यह कालोद समुद्रमें एक एक सूर्यका अन्तरालप्रमाण है । इससे आधी किरणों की गति और उसके ही बराबर समुद्रका अन्तर भी है ।। ५८१-५८२ ॥ ३८०९४ ।
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१ द व पुक्खरद्वेण. २द व मग्गा य.
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५७८ १२८१
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