Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-८. ३३] अट्ठमो महाधियारो
[७७३ 'उणताललक्खजोयणबत्तीससहस्सदोसयाणि पि । अट्ठावण्णा दुकला कंचणणामस्स विस्थारो॥ २८
३९३२२५८ || भडतीसलक्खजोयण इगिसहिसहस्सदोसयाणि पि । उदिजुदाणि दसंसा रोहिदणामस्स वित्यारो॥३.
३८६१२९०11: सगतीसलक्खजोयण गउदिसहस्साणि तिसयबावीसा । भट्टारसा कलाओ चंचीणामस्स विक्खंभो ॥ ३०
३७९०३२२ || सत्तत्तीसं लक्खा उणवीससहस्पतिसयजोयणया। चउवण्णा छन्वीसा कलाओ मरुदस्स परिसंखा॥
३७१९३५४ २६ छत्तीसं लक्खाणि अडदालसहस्सतिसयजोयणया । सगसीदी तिष्णिकला रिद्धिसरुदस्स परिसंखा ॥
३६४८३८७ | सत्तत्तरि सहस्सा चउस्सया पंचतीसलक्खाणि । उणवीसजोयणाणि एक्करसकलाओ वेरुलियरुदं ॥१॥
३१
३५७७४१९ //
कंचन नामक इन्द्रकका विस्तार उनतालीस लाख बत्तीस हजार दौ सौ अट्ठावन योजन और दो कला मात्र है ॥ २८ ॥ ३९३२२५८३३ ।
रोहित नामक इन्द्रकका विस्तार अड़तीस लाख इकसठ हजार दो सौ नब्बै योजन और दश भाग अधिक है ॥ २९ ॥ ३८६१२९०३।
चंचत् नामक इन्द्रकका विस्तार सैंतीस लाख नब्बै हजार तीन सौ बाईस योजन और अठारह कला अधिक है ॥ ३० ॥ ३७९०३२२३६ ।
मरुत् इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण सैंतीस लाख उन्नीस हजार तीन सौ चौवन योजन और छब्बीस कला अधिक है ॥ ३१ ॥ ३७१९३५४३६ ।।
___ ऋद्धीश इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण छत्तीस लाख अड़तालीस हजार तीन सौ सतासी योजन और तीन कला अधिक है ॥ ३२ ॥ ३६४८३८७३३ ।
वैडूर्य इन्द्रकका विस्तार पैंतीस लाख सतत्तर हजार चार सौ उन्नीस योजन और ग्यारह कला अधिक है ॥ ३३ ॥ ३५७७४१९३१ ।
१६ व चंदा'. २द ब दिंदसदस्स.
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