Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७६२ ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ७.६१३
व रयणा
पढमवलए संठिदचंदाइच्चा पत्तेक्कं अट्ठासीदिअन्भहियदोणिसयमेत्तं होदि । हे यरस्स वा पढमवलए संविद चंदाइच्चादो तदणंतरेव रिमदीवस्स वा णीररासिस्स वा पदमवलए संविददाइच्चा पत्तेकं दुगुणं होऊन गच्छद्द जाव सयंभूरमणसमुद्दति । तत्थ अंतिमवियमं वत्तइस्लामोसयंभूरमणसमुहस्स पढमवलए संठिदचंदाइच्चा अट्ठावीसलक्खेण भजिदणवसेढीओ पुणो चउरूवहिद
९
२८०००००
सत्तावीसरूवेहिं अब्भहियं होइ । तच्चेदं । | २७ | पोक्खश्वरदीवद्धपहुदि जात्र सर्व भूरमणसमुद्दो त्ति पत्तेक्कदीवस वा उवहिस्स वा पढमवलय संठिदचंदाइच्चाणं आणयणहेदु इमा सुत्तगांशपोक्खरवरुवद्दिपहुदिं उवरिमदीओवहीण विक्खभं । लक्खहिदं णवगुणिदं सगसगदी उबहिपढमवलयफलं ॥ विषयं पुण पडिवलयं पडि पत्तेक्कं चउत्तरकमेण गच्छइ जात्र सर्वभूरमणसमुदं ति । दोचरिम
पुष्करवर समुद्रके प्रथम वलय में स्थित सूर्य प्रत्येक दो सौ अठासी मात्र हैं । इस प्रकार अधस्तन द्वीप समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र-सूर्योकी अपेक्षा तदनन्तर उपरिम द्वीप अथवा समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र और सूर्य प्रत्येक स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त दुगुणे दुगणे होते चले गये हैं । उनमें से अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभूरमण समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र और सूर्य अट्ठाईस लाख से भाजित नौ जगश्रेणी और चार रूपोंसे भाजित सत्ताईस रूपों से अधिक हैं । वह यह है. ज. श्रे. ९ ÷ २८ ला. + २ । पुष्करार्द्ध द्वीपसे लेकर स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त प्रत्येक द्वीप अथवा समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र-सूर्यो के लाने के लिये यह गाथासूत्र है
पुष्करवर समुद्र आदि उपरिम द्वीप समुद्रोंके विस्तार में एक लाखका भाग देकर जो लब्ध आवे उसे नौसे गुणा करनेपर अपने अपने द्वीप - समुद्रों के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र-सूर्यका प्रमाण आता है ॥ ६१३ ॥
उदाहरण - (१) पुष्करवर समुद्रका वि. ३२; ३२ × ९ = २८८ पुष्करवर
१००००० सूर्योकी संख्या ।
चन्द्र व अथवा
=
१ द ब २८०००००
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(२) स्वयम्भूरमण समुद्रका विष्कम्भ ( ज. श्रे ÷ २८ + ७५००० ) : १००००० = ज. श्रे. ÷ २८ + ू ।
× ९
यहां पर चय प्रत्येक वलयके हर एक स्थानमें चार उत्तर क्रमसे स्वयंभूरमण समुद्र तक
३२००००० यो; ३२००००० + समुद्रके प्रथम वलयमें स्थित चन्द्र व
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