Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती णव य सहस्सा चउसय छासीदी जोयणाणि तिण्णि कला पंचहिदा मेरुतमं बाहिरमग्गे ठिदे तथणे ॥३९.
तेवण्णसहस्साई तिसया भडवीसजोयणा तिकला । सोलसहिदा य खेमामझिमपणधीए तमखेतं ॥ ३९८
भट्टावण्णसहस्सा च उसयपणहत्तरी य जायणया । एक्कत्तालकलामो सीदिहिदा खेमणयरीए ॥ ३९९
बासविसहस्सा णव सयाणि एक्करस जोयणा भागा | पणुवीस सीदिभाजिदा रिहाए मजमपणिधितमं ॥ .
भट्ठासहिसहस्सा अट्ठावण्णा य जोयणा अंसा । एक्कावणं तिमिरं रिद्वपुरीमज्झपणिधीए ॥ ४०१
६८०५८/ बाहत्तर सहस्सा चउसयचउणउदि जोयणा अंसा । पणुतीसं खग्गाए मज्झिमपणिधीए तिमिरखिदी।
सूर्यके बाह्य मार्गमें स्थित रहनेपर मेरुके ऊपर तमक्षेत्र नौ हजार चार सौ छयासी योजन और पांचसे भाजित तीन कला प्रमाण रहता है ॥ ३९७ ।। ९४८६३ ।
क्षेमा नगरीके मध्यम प्रणिधिभागमें तमक्षेत्र तिरेपन हजार तीन सौ अट्ठाईस योजन और सोलहसे भाजित तीन कला प्रमाण रहता है ।। ३९८ ॥ ५३३२८३३३ ।
क्षेमपुरीमें तमक्षेत्र अट्ठावन हजार चार सौ पचहत्तर योजन और अस्सीसे भाजित इकतालीस कला प्रमाण रहता है ।। ३९९ ॥ ५८४७५४।।
रिष्टा नगरीके मध्य प्रणिधिभागमें तमक्षेत्र बासठ हजार नौ सौ ग्यारह योजन और मस्सीसे भाजित पच्चीस भाग अधिक रहता है ॥ ४०० ॥ ६२९११२५ ।
अरिष्टपुरीके मध्यप्रणिधिभागमें तिमिरक्षेत्र अड़सठ हजार अट्ठावन योजन और इक्यावन भाग अधिक रहता है ॥ ४०१ ॥ ६८०५८ । . खड्गा नगरीके मध्यम प्रणिधिभागमें तिमिरक्षेत्र बहसर हजार चार सौ चौरानबै योजन . और पैंतीस भाग अधिक रहता है ॥ ४०२ ॥ ७२४९४३: ।
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