Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७४२) तिलोयपेण्णत्ती
[७.४८९मंडलखेत्तपमाणं जहण्णभे तीस नोयणा होति । तं चिय दुगुणं तिगुणं मज्झिमवरभेसु पत्तेकं ॥ ४८९
३० । ६० । ९०।
भट्टारस जोयणया हवेदि अभिजिस्म मंडलक्खित्तं । सट्टियणहमेत्ताओ णियणियताराण मंडलखिदीओ ॥ उडाधो दक्खिणाए उत्तरमज्झे सु सादिभरणीओ। मूलं अभिजीकित्तियरिक्खाओ चरंति णियमग्गे॥ ४९१ एदाणि रिक्खाणि णियणियमग्गेसु पुब्वभणिदेसुं । णिचं चरंति मंदरसेलस्स पदाहिणकमेणं ॥ ४९२ एदि मघा मज्झण्हे कित्तियरिक्खस्स अस्थमणसमए । उदए अणुराहामो एवं जाणेज सेसाओ ॥ ४९३
। एवं णक्खत्ताणं परूवणा सम्मत्ता।
जघन्य नक्षत्रों के मण्डलक्षेत्रका प्रमाण तीस योजन और इससे दूना एवं तिगुना वही प्रमाण क्रमसे मध्यम और उत्कृष्ट नक्षत्रों से प्रत्येकका है ॥ ४८९ ॥ ३० । ६० । ९० ।
अभिजित् नक्षत्रका मण्डलक्षेत्र अठारह योजन प्रमाण है । और अपने अपने ताराओंका मंडलक्षेत्र स्वस्थित आकाश मात्र ही है ॥ ४९० ॥
स्वाति, भरणी, मूल, अभिजित् और कृत्तिका, ये पांच नक्षत्र अपने मार्ग क्रमसे ऊर्ध्व, अधः, दक्षिण, उत्तर और मध्यमें संचार करते हैं ॥ ४९१ ॥
ये नक्षत्र मन्दर पर्वतके प्रदक्षिणक्रमसे पूर्वोक्त अपने अपने मार्गों में नित्य ही संचार करते हैं ।। ४९२ ॥
कृत्तिका नक्षत्रके अस्तमनकालमें मघा मध्याह्नको और अनुराधा उदयको प्राप्त होता है। इसी प्रकार शेष नक्षत्रों के भी उदयादिकको जानना चाहिये ॥ ४९३ ॥
विशेषार्थ- जिस समय किसी विवक्षित नक्षत्रका अस्तमन होता है उस समय उससे आठवां नक्षत्र मध्याह्नको और इससे भी आठवां नक्षत्र उदयको प्राप्त होता है । इस नियमके अनुसार कृतिकादिकके अतिरिक्त शेष नक्षत्रों के भी अस्तमन, मध्याह्न और उदयको स्वयं ही जानलेना चाहिये (देखो त्रिलोकसार गा. ४३६)।
इस प्रकार नक्षत्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
१९ ताराणि.
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