Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७. ४९९ ]
सत्तमेो महाधियारो
[ ७४३
दुविदा चरमचराओ पद्दण्णताराओ ताण वरसंखा । कोडाकोडीलक्खं तेत्तीससहस्सणवसया पण्णं ॥ ४९४
१३३९५००००००००००००००० |
छत्तीस अचरतारा जंबूदीवस्स चउदिसाभाए । एदाओ दोससिणो परिवारा अद्धमेक्कम्मि ॥ ४९५
३६ । ६६९७५००००००००००००००। रिक्खगमणा अधियं गमणं जाणेज सयलताराणं । ताणं णामप्पहुदिसु उवएसो संपइ पणट्ठो ॥ ४९६ चंदादो मत्तंडो मत्तंडादो गहा गहाहिंतो । रिक्खा रिक्खाहिंतो ताराभो होंति सिग्वगदी ॥ ४९७
। एवं ताराणं परूवणं सम्मत्तं ।
अयणाणि य रविसणिणो सगसगखे त्ते' गहा य जे' चारी । णत्थि अयणाण भगणे नियमा ताराण एमेव ॥ रविभयणे एक्केकं तेसीदिसया हवंति दिणरत्ती । तेरसदिवसा चंदेरे सत्तट्ठीभागचउचालं ॥ ४९९
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१८३ | १३
प्रकीर्णक तारे चर और अचर रूपसे दो प्रकार के होते हैं । इनकी उत्कृष्ट संख्या एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोड़ाकोड़ी है ॥ ४९४ ॥
१३३९५०००००००००००००००।
इनमें से छत्तीस अचर तारा जम्बूद्वीपके चारों दिशाभागों में स्थित हैं । ये ( उपर्युक्त संख्या प्रमाण ) दो चन्द्रोंके परिवार-तारे हैं । इनसे आधे एक चन्द्रके परिवार - तारे समझना चाहिये || ४९५ || अचर तारा ३६ | ६६९७५००००००००००००००।
नक्षत्रोंके गमनसे सब ताराओंका गमन अधिक जानना चाहिये । इनके नामादिकका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है || ४९६ ॥
चन्द्रसे सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रहोंसे नक्षत्र और नक्षत्रोंसे भी तारा शीघ्र गमन करनेवाले होते हैं ॥ ४९७ ॥
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इस प्रकार ताराओं का कथन समाप्त हुआ ।
सूर्य, चन्द्र और जो अपने अपने क्षेत्रमें संचार करनेवाले ग्रह हैं उनके अयन होते हैं। नक्षत्रसमूह और ताराओंके इस प्रकार अयनोंका नियम नहीं है ॥ ४९८ ॥
सूर्य के प्रत्येक अयनमें एक सौ तेरासी दिन-रात्रियां और चन्द्रके अयनमें सड़सठ भागों में से चवालीस भाग अधिक तेरह दिन होते हैं ॥ ४९९ ॥ १८३ । १३६ ।
१ द ब समयक्खेत २ ब जं. ३ द ब दिवादिचंदे.
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