Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७३४] तिलोयपण्णत्ती
[७. ४४२खेमादिसुरवणतं हुवंति जे पुश्वरत्तिअवरणहा । कमसो ते णादन्या अस्सपुरीपहुदि णवयठाणेसुं ॥ ४४२ होति अवज्झादिसु णवठाणेसुं पुघरत्तिभवरण्हं । पुवुत्तरयणसंचयपुरादिणयराण सारिच्छा ॥ ४४३ किंचूणछम्मुहुत्ता रत्ती जा पुंडरीगिणीणयरे । तह होदि वीदसोके भरहेरावदखिदीसु मज्मणे ॥ ४४४ तावे णिसहगिरिदे उदयस्थमणाणि हॉति भाणुस्स । णीलगिरिंदेसु तहा एक्कखणे दोसु पासेसु ॥ ४४५ पंचसहस्सा [तह पणसयाणि चउहत्तरी य अदिरेगो। तेत्तीस बेसयंसाहारी सीदीजुदा तिसया ॥ ४४६
५५७४ | २३३/ एत्तियमेत्तादु परं उरि णिसहस्स पढममग्गम्मि । भरहक्खेत्ते चक्की दिगयरबिंब ण देवखंति ॥ ४४७ उवरिम्मि णीलगिरिणो ते परिमाणादु पढममग्गम्मि । एरावदम्मि चकी इदरदिणेसं ण देवखंति ॥ ४४८ सिहिपवणदिसाहितो जंबूदीवस्स दोणि रविषिवा । दो जोयणाणि पुह पुह भादिममग्गा बिझ्यपहे ॥
क्षेमा नगरीसे लेकर देवारण्य तक जो पूर्वरात्रि एवं अपराह काल होते हैं वे ही क्रमसे अश्वपुरी आदिक नौ स्थानोंमें भी जानने चाहिये ॥ ४४२ ॥
अवध्यादिक नौ स्थानों में पूर्वोक्त रत्नसंचयपुरादिक नगरोंके सदृश ही पूर्वरात्रि व अपराह्न काल होते हैं ॥ ४४३ ॥
भरत और ऐरावत क्षेत्रों मध्याह्नके होनेपर जिस प्रकार पुण्डरीकिणी नगरमें कुछ कम छह मुहूर्त रात्रि होती है, उसी प्रकार वीतशोका नगरीमें भी कुछ कम छह मुहूर्तप्रमाण रात्रि होती है ॥ ४४४ ॥
उस समय जिस प्रकार निषध पर्वतपर सूर्यका उदय व अस्तगमन होता है, उसी प्रकार एक ही क्षणमें नील पर्वतके ऊपर भी दोनों पार्श्वभागोंमें (द्वितीय) सूर्यका उदय व अस्तगमन होता है ॥ ४१५॥
भरतक्षेत्रमें चक्रवर्ती पांच हजार पांचसौ चौहत्तर योजन और एक योजनके तीनसौ अस्सी भागोंमेंसे दो सौ तेतीस भाग आधिक, इतनेसे आगे निषध पर्वतके ऊपर प्रथम मार्गमें सूर्यबिम्बको नहीं देखते हैं ॥ ४४६-४४७ ॥ ५५७४३३३ ।
ऐरावत क्षेत्रमें स्थित चक्रवर्ती नील पर्वतके ऊपर इस प्रमाणसे (५५७४ ३ ३ ३) अधिक दूर प्रथम मार्गमें दूसरे सूर्यको नहीं देखते हैं ॥ ४४८ ॥
जम्बूद्वीपके दोनों सूर्यबिम्ब अग्नि व वायु दिशासे पृथक् पृथक् दो दो योजन लांघकर प्रथम मार्गसे द्वितीय पथमें प्रवेश करते हैं ॥ ४४९ ॥
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