Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-७.४७६]
सत्तम। महाधियारो अभिजिस्स छस्सयाणि तीसजुवाणि हुवंति णभखंडा । एवं णक्खत्ताणं सीमविभागं वियाणेहि ॥ ४७२
६३.। पत्तेक रिक्खाणिं सब्वाणि मुहुत्तकालेणं । लंघेति गयणखंडे पणतीसट्ठारससयाणि ॥ ४७३
१८३५। दोससिणक्खत्ताणं परिमाणं भणमि' गयणखंडेसुं । लक्खं णव य सहस्सा अट्ठसया काहलायारा ॥ १७५ रिक्खाण मुहुत्तगदी होदि पमाणं फलं मुहुत्तं च । इच्छा णिस्सेसाई मिलिदाई गयणखंडाणि ॥ ४७५
१८३५ । १०९८००। तेरासियम्मि लद्धं णियणियपरिहीसु सो गमणकालो। तम्माण उणसट्ठी होति मुहुत्ताणि अदिरेको ॥ ४७६
परन्तु अभिजित् नक्षत्रके छहसौ तीस ही नभखण्ड होते हैं । इस प्रकार नभखण्डोंसे इन नक्षत्रोंकी सीमाका विभाग जानना चाहिये ॥ ४७२ ॥ ६३० ।
सब नक्षत्रोंमेंसे प्रत्येक एक मुहूर्तकालमें अठारहसौ पैंतीस गगनखण्डोंको लांघते . हैं ॥ ४७३ ॥ १८३५।
दो चन्द्रों सम्बन्धी नक्षत्रोंके गगनखण्डप्रमाणको कहता हूं। ये गगनखण्ड काहला (वाद्यविशेष ) के आकार हैं । इनका कुल प्रमाण एक लाख नौ हजार आठसौ है ।। ४७४ ॥
ज. न. गगनखण्ड १००५, १००५ x ६ = ६०३० । म. न. ग. खण्ड २०१०; २०१० x १५ = ३०१५०। उ. न. ग. खण्ड ३०१५, ३०१५४६ = १८०९० । अभिजित् ग. खं. ६३०, ६०३० + ३०१५० + १८०९० + ६३० = ५४९०० एक चन्द्रसम्बन्धी नक्षत्रोंके गगनखण्ड । ५४९०० ४ २ = १०९८०० उभय चन्द्र सम्बन्धी न. ग. खण्ड ।
[यदि अठारहसौ पैंतीस गगनखण्डोंके अतिक्रमण करनेमें नक्षत्रोंका एक मुहूर्त काल व्यतीत होता है, तो समस्त गननखण्डोंके अतिक्रमण करनेमें उनका कितना काल व्यतीत होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करनेमें ] नक्षत्रोंकी मुहूर्तकालपरिमित गति ( १८३५) प्रमाणराशि, एक मुहूर्त फलराशि और सब मिलकर गगनखण्ड (१०९८००) इच्छाराशि होती है। उक्त प्रकार त्रैराशिकके करनेपर जो लब्ध आवे उतना अपनी अपनी परिधियोंमें गमनका काल समझना चाहिये। उसका प्रमाण यहां उनसठ मुहूर्तसे अधिक आता है ॥ ४७५-४७६ ॥ ५९ ।
१९ मणम्मि.
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