Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७१२] तिलोयपण्णत्ती .
[७. ३२९दुगछदुगअपंचा अंककमे णबदुगेक्कसत्तकला। खच उछचउइगिभजिदा तदियपहक्कम्मि खमपुरताओ ॥
दुगअट्टछ दुगछका अंककमे जोयणागि अंसा य । पंचयछ अटएका तामो रिट्ठाय तदियपइसूरे ॥ ३३०
___६२६४२ / १८६५ |
| १४६४० गयणेक्कअदृसत्ता छक्कं अंकक्कमेण जोयणया। अंसा णवपणदुखइगि तदियपहामि रिट्टपुरे ॥ ३३१
१०२५९
| १४६४० णभतियदुगदुगसत्ता अंककमे जायणाणि अंसा य । पगणवणव वउमेत्ता ताओ खागार तदियपहतवणे ॥
६७८१०
७२२३०:४९९५
११२° १४६४० अट्ठपणतिदयसत्ता सत्तंककमे णवट्ठतितिएक्का । होति कलाओ ताओ तदियपहक्कम्मि मंजुसपुरीए ॥.
सूर्यके तृतीय मार्ग स्थित रहनेपर क्षेमपुरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण दो, छह, दो, आठ और पांच, इन अंकोंके क्रममे अट्ठावन हजार दो सौ बासठ योजन और चौदह हजार छह सौ चालीससे भाजित सात हजार एक सौ उनतीस कला आधिक रहता है ॥ ३२९ ॥
५८२६२१४१६२४ । सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहनेपर अरिष्टा नगरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण दो, आठ, छह, दो और छह, इन अंकों के क्रमसे वासठ हजार छह सौ व्याप्ती योजन और एक हजार आठ सौ पैंसठ भाग अधिक रहता है ॥ ३३० ॥ ६२६८२१४६६४ ।
___सूर्यके तृतीय पथमें स्थित होनेपर अरिष्टपुरमें तापक्षेत्रका प्रमाण शून्य, एक, आठ, सात और छह, इन अंकोंके क्रमसे सड़सठ हजार आठ सौ दश योजन और दश हजार दो सौ उनसठ भाग अधिक रहता है ॥ ३३१ ॥ ६७८१० १४३५९ ।
सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित रहनेपर खड्गापुरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण शून्य, तीन, दो, दो और सात, इन अंकोंके क्रमसे बहत्तर हजार दो सौ तीस योजन और चार हजार नौ सौ पंचानवै भाग अधिक रहता है ॥ ३३२ ॥ ७२२३०१४९९४५ ।
सूर्यके तृतीय मार्गमें स्थित होनेपर मंजूषापुरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण आठ, पांच, तीन, सात और सात, इन अंकोंके क्रमसे सतत्तर हजार तीन सौ अट्ठावन योजन और तेरा हजार तीन सौ नवासी कला अधिक होता है ।। ३३३ ॥ ७७३५८१ ३ ३४४।
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